किसान आंदोलन को नजदीक से देखने-समझने के लिए मंगलवार, एक दिसंबर का दिन टिकरी बॉर्डर पर किसानों के बीच बिताया। मेरे साथ आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष भी थे। हमने देखा कि टीकरी बॉर्डर से 14-15 किलोमीटर पहले से ही, सारा रास्ता किसानों के कब्जे में है। रोहद टोल प्लाजा से ही किसानों के ट्रेक्टर-ट्राली, ट्रक, टेम्पो आदि वाहनों की लंबी कतारें लगी हैं और पूरे रास्ते पर जाम की स्थिति बनी हुई है। बहादुरगढ़ बाईपास मोड़ से टिकरी बॉर्डर तक तो पूरे रास्ते पर किसानों का ही कब्ज़ा है। रोहतक से दिल्ली जाने वाली सड़क पर दूर दूर तक लोगों का हुजूम, किसान यूनियन के झंडे और ट्रैक्टर ट्राली ही ट्रैक्टर ट्रॉली दिखाई दे रहे हैं। ट्रालियों के बीच सिर्फ इतना रास्ता है कि लोग पैदल या साईकिल पर जा सकें, वो भी सिर्फ बॉर्डर तक। क्योंकि टीकरी बॉर्डर पर पुलिस ने कई लेयर में भारी पत्थर और लोहे के अवरोध खड़े करके रास्ते को पूरी तरह से बंद किया हुआ है। रोहतक से दिल्ली में घुसने का रास्ता प्रशासन ने पूरी तरह ब्लॉक किया हुआ है। वहीं पता चला कि शाम तक दिल्ली में घुसने के अन्य छोटे रास्ते भी आवागमन के लिए बंद कर दिए गए हैं।
खैर, हम बात कर रहे हैं टीकरी बॉर्डर की। हमें बॉर्डर तक जाने के लिए अपनी बाइक बहादुरगढ़ मोड़ पर ही छोड़नी पड़ी, क्योंकि आगे पूरा रास्ता बंद था। हमने देखा कि किसान अपनी ट्रॉलियों के पास इत्मीनान से बैठे हैं। कुछ सुस्ता रहे हैं, कुछ छोटे-छोटे समूहों में चर्चाएं कर रहे हैं, कुछ खाना बना रहे हैं और कुछ अपनी-अपनी यूनियनों के झंडे उठाए, नारे लगाते हुए अपने आक्रोश व जोश का इज़हार कर रहे हैं। हरियाणा और दिल्ली के विभिन्न छात्र संगठनों से जुड़े युवा, क्रांतिकारी गीतों और नारों से उनका हौसला बढ़ा रहे हैं।
वहां सब कुछ इतना सहज ढंग से चल रहा है कि लग ही नहीं रहा कि हम किसी आंदोलन के बीच में हैं। ऐसी अनुभूति हो रही है, मानो हम किसी उत्सव या धार्मिक समागम में आ गए हों – जहां नारे लग रहे हैं, गीत गाए जा रहे हैं, गुरु का लंगर चल रहा है – जहां सब लोग अपनी-अपनी मस्ती में हैं। वे कामों में व्यस्त हैं, पर अस्त-व्यस्त अथवा थके हुए नहीं हैं।
26 नवंबर को पंजाब-हरियाणा बॉर्डर और हरियाणा के अलग अलग जिलों में प्रशासन द्वारा लगाए गए आठ-आठ नाकों को तोड़कर दिल्ली बॉर्डर तक पहुंचे जमीदारों के माथे पर कोई शिकन दिखाई नहीं दे रही। कोई जल्दबाजी नहीं, कोई तनाव नहीं। सरकार के प्रति गुस्सा और आक्रोश जरूर उनकी बातों में झलक रहा है, लेकिन उग्रता कहीं दिखाई नहीं दे रही। बच्चे, युवा, बुजुर्ग, महिलाएं सब पूरे धैर्य के साथ डटे हुए हैं।
हमने अनेक किसानों से बात की। उनकी बातों से आभास हुआ कि इस बार किसान बहुत पक्के इरादे और पुख्ता रणनीति के साथ आए हैं। उन्होंने कहा कि वे इस सर्दी के मौसम में ठंडे पानी की बौछार, आंसू गैस के गोलों और पुलिस के डंडों की मार झेलते हुए यहां तक पहुंचे हैं। लेकिन इतना सब होने के बावजूद न उनके चेहरे पर थकान दिखाई दे रही है और न ही कोई हताशा, निराशा या झल्लाहट। उन्हें नहीं पता कि आंदोलन कितना लंबा चलेगा और इसका क्या अंजाम होगा। फिर भी उनके चेहरों पर सहज मुस्कान, आंखों में चमक और आवाज़ में बुलंदी साफ दिखाई दे रही है। उनका कहना है कि वे 6 महीने का राशन साथ लेकर आए हैं और जब तक तीनों कृषि कानूनों को रद्द नहीं करवा देंगे, तब तक वापिस घर नहीं लौटेंगे।
उनके तेवर देखकर लग रहा है कि किसान झुकने वाले नहीं हैं। हालांकि उनका मानना है कि सरकार तरह-तरह की बातें करके अन्दोलन को कमज़ोर करने और आंदोलनकारियों में फूट डालने की कोशिश कर रही है। इसे सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश की जा रही है। परन्तु आंदोलनकारी काफी सजग हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब में दो माह से पूर्णतया शांतिपूर्वक आंदोलन चलता रहा है। यही नहीं, ‘दिल्ली कूच’ के दौरान भी 25 तारीख से अब तक उन्होंने कोई बड़ी अप्रिय घटना नहीं होने दी। उनकी एकजुटता भी साफ दिखाई दे रही है। किसानों का अपने नेताओं, अपनी जत्थेबंदियों पर पूरा भरोसा बना हुआ है। वे किसी भी ऐसे एक्शन या बात से बच रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हें बदनाम किया जा सके। यानी, अभी तक आंदोलन पूरी तरह उनके नियंत्रण में है।
किसानों से बात करने के बाद एक बात और स्पष्ट हो गई कि वे आंदोलन के मुद्दे पर काफी जागरूक हैं। बुजुर्ग हो या युवा, लगभग हर व्यक्ति विस्तार से किसानों की समस्या और इन बिलों से होने वाले नुकसानों के बारे में बता रहा है। वे सरकार की नीतियों की खामियों को अंडरलाइन कर रहे हैं और सरकार के दूसरे फैसलों तथा उसकी मंशा पर भी तर्कपूर्ण बात करने में सक्षम हैं। एक और बात, संभवतः यह पहला आंदोलन है, जिसमें मीडिया की भूमिका पर खुलकर बात हो रही है। सरकार-समर्थित मीडिया से दूरी रखी जा रही है, उसकी पोल खोली जा रही है, बॉयकॉट किया जा रहा है। शायद ही मेन स्ट्रीम मीडिया की इतने बड़े स्तर पर पहले कभी इतनी छीछालेदरी हुई हो! इसमें भी महत्वपूर्ण बात यह है कि बड़े नेता ही नहीं, आम किसान भी इनको लेकर काफी जागरूक दिखाई दे रहे हैं और अपने फोन तथा सोशल मीडिया के माध्यम से ही देश के लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि यहां भी ज्यादातर किसान पंजाब से हैं, लेकिन हरियाणा के फतेहाबाद, हिसार, सिरसा, रोहतक भिवानी, झज्जर के भी बहुत सारे किसान आंदोलन में शामिल हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। स्थानीय लोग आंदोलनकारियों की हर संभव मदद कर रहे हैं। महम के विधायक बलराज कुंडू, किसान सभा के उपाध्यक्ष इंद्रजीत सिंह सहित मजदूर संगठन सीटू, जनवादी महिला समिति, छात्र एकता मंच व आइसा के कार्यकर्ता भी इस मोर्चे पर जुटे हैं। बलराज कुंडू ने यहां महम इलाके के किसानों के लिए लंगर लगाया हुआ है और वे रात को भी यहीं किसानों के बीच ही रहते हैं। सीटू और किसान सभा ने भी किसान रसोई की शुरुआत की है। किसानों ने बताया कि हरियाणा और दिल्ली के लोग बहुत ही खुले-दिल से मदद कर रहे हैं। वे दूध, सब्जी, खाना दे रहे हैं। नाके तोड़ने में भी हरियाणा के किसानों और नौजवानों ने ही पहल की थी। उन्होंने ही अपनी जेसीबी मशीनों से बाधाओं को हटाया था।
पहले किसान रामलीला मैदान जाकर दिल्ली को अंदर से जाम करना चाहते थे, लेकिन अब उन्होंने अपनी रणनीति बदल दी है। उनका कहना है कि अब वे दिल्ली में नहीं घुसेंगे, बल्कि बाहर से दिल्ली को घेरेंगे। हालांकि दिल्ली की जनता के प्रति उन्होंने अपनी भावनाएं भी व्यक्त की हैं कि उनका इरादा आम लोगों को परेशान करना नहीं है। वे लोगों को हो रही तकलीफों के लिए माफी भी मांगते हैं लेकिन वे भी मजबूरी में ही अपना घर-बार छोड़कर यहां खुले आसमान के नीचे पड़े हैं। अधिकतर स्थानीय लोग उनकी बात को समझ रहे हैं और उनकी मदद कर रहे हैं। धरने की वजह से टीकरी बॉर्डर पर स्थित उद्योग-धंधे ठप्प हैं और स्थानीय उद्योगपतियों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके बावजूद उद्योगपतियों ने अपनी फैक्टरियां उनके लिए खोल दी हैं। वे उनके लिए नहाने और शौचालय की सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं। कइयों ने तो खाने का प्रबंध भी किया है।
हां! स्वच्छता और देश को खुले में शौच से मुक्त करने का दावा करने वाली केंद्र सरकार ने यहां पानी और शौचालयों का प्रबंध तक नहीं किया है, जिसकी वजह से बड़ी दिक्कत खड़ी होने वाली है। अगर किसानों को यहां कुछ दिन और इसी तरह डटे रहना पड़ गया, तो निस्संदेह सरकार के स्वच्छता अभियान की पोल खुल जाएगी।
बता दें कि पूरा आंदोलन दो किसान कमेटियों की अगुवाई में चल रहा है। एक, पंजाब की किसान यूनियनों की 32 सदस्यीय कमेटी और दूसरी, सात सदस्यीय नेशनल को-आर्डिनेशन कमेटी। सारे फैसले ये दोनों कमेटियां मिलकर ले रही हैं। दोनों एक-दूसरे के फैसलों का सम्मान करती दिख रही हैं। इसका अंदाज़ा आज सरकार के साथ हुई पहले दौर की बातचीत से भी हो गया, जिसमें दोनों कमेटियों के सदस्यों ने पूरी एकजुटता और आपसी भरोसे का परिचय दिया।
कुल मिलाकर, लम्बे समय के बाद कोई आंदोलन इतना सुव्यवस्थित, नियन्त्रित और ऊर्जा से भरपूर नज़र आया है। किसान आंदोलन में अन्ना आंदोलन जैसा जोश दिखाई दे रहा है। लेकिन लगता है कि आंदोलनकारियों ने अन्ना आंदोलन से सबक सीख कर अपनी रणनीति तय की है। सरकार ने उन पर बुराड़ी मैदान में आने का दबाव बनाया, लेकिन उन्होंने बुराड़ी जाने की बजाय बाहर से दिल्ली की नाकेबंदी करके सरकार को झुकाने की रणनीति अपनाई। किसान नेताओं ने कहा कि दिल्ली के बुराड़ी मैदान में लंबे समय तक धरने पर बैठे रहने से वे खुद ही पस्त हो जाएंगे। तब सरकार आसानी से आंदोलन को कुचल सकती है। उन्होंने कहा कि बुराड़ी मैदान कोई आंदोलन की जगह नहीं है। वह तो एक खुली जेल है जहां किसानों को कैद कर दिया जाएगा। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि सरकार एक ओर तो मीडिया के माध्यम से किसानों को बुराड़ी बुला रही है, वहीं खुद ही सड़क पर नाके लगाकर उन्हें आगे बढ़ने से रोक रही है। ये दोनों ही बातें विरोधाभासी हैं। इसीलिए उन्होंने कहा है कि जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जाती, वे यहीं डटे रहेंगे और दिल्ली की घेरेबंदी किए रहेंगे।
- अविनाश सैनी,
संपादक, सारी दुनिया।