नाटक में दिखा अभिनेता और निर्देशक का संघर्ष
रोहतक। ‘सांस तो मैं 24 घंटे लेता हूँ, पर जीता वही दो घण्टे हूं, जब मंच पर होता हूं…और …मैं नाटकों को क्या संभालूंगा, मुझे ही नाटक ने संभाल रखा है। नाटक मेरी ज़िंदगी में न होते तो शायद मैं भी न होता।’ ये संवाद हैं कला एवं संस्कृति कार्य विभाग, हरियाणा के सहयोग से हरियाणा इंस्टिट्यूट ऑफ परफॉर्मेंस आर्ट्स (हिपा) द्वारा स्थानीय पठानिया वर्ल्ड कैंपस में चल रहे बहुभाषी ड्रामा फेस्टिवल के दूसरे दिन मंचित नाटक ‘दिग्दर्शक’ के। गुजराती नाटककार प्रियम जानी द्वारा लिखित नाटक दिग्दर्शक में एक अभिनेता और उसे सफलता के मुकाम तक पहुंचाने वाले निर्देशक के संघर्ष को दिखाया गया। नाटक ने दिखाया कि एक कलाकार जीवनभर कला की साधना करता है और इसके लिए अपना ही नहीं, अपने बच्चों का भविष्य भी दांव पर लगा देता है। लेकिन उसकी इस साधना को कोई नहीं देख पाता और अंत में वह नितांत अकेला हो जाता है। नाटक में एक डायरेक्टर द्वारा एक्टर को बनाने की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला गया। सिफर थियेटर अमृतसर के कलाकारों द्वारा मंचित इस नाटक का निर्देशन विशाल शर्मा ने किया।
नाटक में एक नाट्य निर्देशक (विशाल शर्मा) के पास एक नया लड़का (रोहन कंबोज) नाटक सीखने आता है, जिसे तराश कर वह एक कुशल अभिनेता बना देता है। लेकिन जब वह अभिनेता एक्टिंग की बारीकियां सीख जाता है तो अचानक उसे छोड़ कर फिल्मों में चला जाता है और बड़ा स्टार बन जाता है। करीब 15 साल बाद वह अपने गुरु से मिलने आता है और उससे पूछता है कि वे उससे नाराज़ क्यो हैं। तब गुरु भी पूछता है कि वह अचानक उसे छोड़ कर क्यो गया। तब भेद खुलता है कि नाटक के प्रति समर्पित होने के कारण निर्देशक का बेटा खुद को उपेक्षित महसूस करता है। वही अभिनेता से नाटक ग्रुप छोड़ने का आग्रह करता है, ताकि उसके पिता उसके करीब आ सकें। नाटक में सहायक निर्देशक विशु शर्मा ने प्रकाश व्यवस्था और गायित्री राजपूत ने म्यूजिक ऑपरेट किया। मंच संचालन रिंकी बतरा ने किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्यातिथि पूर्व गृह राज्य मंत्री सुभाष बतरा, विशिष्ट अतिथि पूर्व श्रम एवं रोजगार मंत्री कृष्णमूर्ति हुड्डा कार्यक्रम अध्यक्ष अंशुल पठानिया, हिपा के प्रधान विश्वदीपक त्रिखा ने दीप प्रज्वलन से किया। अपने संबोधन में सुभाष बतरा ने रंगमंच के प्रति त्रिखा के समर्पण को रेखांकित करते हुए कहा कि कलाकार बनना आसान काम नहीं है। इसके लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि अपने जीवन में हर व्यक्ति अभिनय करता है, बेशक वह मंच का अभिनेता न हो। कृष्णमूर्ति हुड्डा ने कलाकार दिल के सच्चे होते हैं। वे जीवनभर परेशानियां झेलते हैं, धोखा कहते हैं, पर एक फौजी की तरह अपने मिशन पर डटे रहते हैं।
इस अवसर पर धर्मसिंह अहलावत, आर. के. रोहिल्ला, शक्ति अहलावत, यशपाल छाबड़ा, कृष्ण नाटक, नीतू सेठी, रजत बिंद्रा, सुभाष नगाड़ा, शक्ति सरोवर त्रिखा, रिंकी बतरा, अविनाश सैनी, सिद्धार्थ भारद्वाज, विकास रोहिल्ला, सुजाता, मनोज, डॉ. हरीश वशिष्ठ, यतिन वधवा तथा पठानिया स्कूल के स्टॉफ सहित अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।