अंतिम दिन नाटक “त्रियात्रा” ने बटोरी दर्शकों की वाहवाही
रोहतक। एक तरफ हास्य के रंग तो दूसरी ओर मनोवैज्ञानिक झंझावातों का तिलिस्म। इन दोनों की बानगी यहां कला एवं संस्कृति कार्य विभाग, हरियाणा के सहयोग से हरियाणा इंस्टिट्यूट ऑफ परफॉर्मेंस आर्ट्स (हिपा) द्वारा स्थानीय पठानिया वर्ल्ड कैंपस में आयोजित बहुभाषी ड्रामा फेस्टिवल के अंतिम दिन की प्रस्तुति ‘त्रियात्रा’ में देखने को मिली। दो कहानियों, अमेरिका के ओ हेनरी के नाटक ‘बारबर शॉप’ तथा भारत के गगन मिश्रा के नाटक ‘अंत की शुरुआत’ को एक सूत्र में पिरोते हुए त्रियात्रा में मानवीय स्वभाव और मनोभावों का सहज और खूबसूरत चित्रण किया गया। नाटक में साधारण दिखने वाले पात्रों के माध्यम से समाज की गहरी व अर्थपूर्ण समीक्षा भी देखने को मिली।
त्रियात्रा के पहले हिस्से में एक बारबर शॉप का दृश्य प्रस्तुत किया गया। इसमें बाल काटने वाले कारीगर और ग्राहकों के माध्यम से अनेक ऐसी परिस्थितियां पैदा की गईं, कि दर्शक भी हँसी से लोटपोट हो गए। जब एक नए ग्राहक को फांसने के चक्कर में बारबर (नाई) को पिटना पड़ता है, तब भी हास्य पैदा होता है और जब उसे एक महिला की शेव बनाते समय विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, तब भी हास्य उत्पन्न होता है। एक बार तो वह एक गंजे व्यक्ति को बाल उगाने का मनघडंत नुस्खा दे देता है और वह व्यक्ति सच में बाल उगने की बात कह कर हँसी-हँसी में उससे सैंकड़ों डॉलर लूट लेता है। नाटक के दूसरे हिस्से में एक लेखक की कहानी दिखाई गई, जो दूसरों की रचनाओं को अपने नाम से छपवाकर सफलता के शिखर पर पहुंच जाता है। सफलता के नशे में वह अपनी पत्नी पर भी अत्याचार करता है। लेकिन इसके लिए उसकी अंतरात्मा उसे कचोटती रहती है। इसी मानसिक स्थिति में एक दिन उसे लगता है उसकी किसी कहानी के किरदार ने उससे बगावत कर दी। उसने लेखक के सारे कच्चे चिट्ठे खोल दिए और अंत में उसका कत्ल कर दिया। इसी के साथ वह अर्धनिद्रा से बाहर आता है और अपने किए पर पश्चाताप करते हुए अपनी रचनाओं को आग के हवाले कर देता है। नाटक का निर्देशन प्रियदर्शिनी और गगन मिश्रा ने किया, जबकि कपिल शर्मा, अभिषेक झांकल, महमूद अली, साची, प्रियंका, सूर्यभान और गगन ने विभिन्न किरदारों को जीवंत किया। प्रकाश व्यवस्था कृष्ण नाटक ने की। मंच संचालन फेस्टिवल डायरेक्टर अविनाश सैनी ने किया।
आए हुए मेहमानों और दर्शकों का स्वागत करते हुए स्कूल के डायरेक्टर अंशुल पठानिया ने फेस्टिवल की विभिन्न प्रस्तुतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि पहले दिन उर्दू नाटक तख़्त, दूसरे दिन पंजाबी में दिग्दर्शक, तीसरे दिन बांग्ला में भोरेर आशाएं का मंचन किया गया। तीनों ही प्रस्तुतियां इतनी बेहतरीन रहीं कि कहीं भी भाषा की दीवार दिखाई नहीं दी। भाजपा सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष कपिल सहगल ने अपने संबोधन में कहा कि इस तरह के आयोजन लोगों में नई ऊर्जा का संचार करते हैं। उन्होंने रंगमंच के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पण भाव से जुटे हिपा अध्यक्ष विश्वदीपक त्रिखा और कलाकारों के सहयोग हेतु हमेशा तत्पर रहने वाले अंशुल पठानिया को ऐसे प्रभावशाली आयोजन के लिए साधुवाद देते हुए कहा कि वे भी ऐसे कार्यों में हर तरह की मदद देने को तैयार हैं। फेस्टिवल कॉर्डिनेटर रिंकी की अगुवाई में हिपा के बाल कलाकार पावनी, गर्व कोचर और आध्या ने कलाकारों को स्मृति चिह्न प्रदान किए।
इस अवसर पर वरिष्ठ सर्जन और समाजसेवी डॉक्टर आर एस दहिया, भाजपा नेता कपिल सहगल, एक्टर-डायरेक्टर प्रो. आशीष नेहरा, चित्रकार शक्ति सिंह अहलावत, हरिभूमि के संपादक शम्भू भद्रा, अंशुल पठानिया और विश्वदीपक त्रिखा के अलावा ज्योति बतरा, गौरव चौहान, शक्ति सरोवर त्रिखा, सुभाष नगाड़ा, सुजाता, अविनाश सैनी, विकास रोहिल्ला, रिंकी बतरा, यतिन वधवा, रजत बिंद्रा, गुरदयाल सिंह, दीपक तथा पठानिया स्कूल के स्टॉफ सहित अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।