देश के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है। उन्होंने छेड़छाड़ के एक आरोपी को पीड़िता के घर जाकर राखी बंधवाने पर जमानत देने संबंधी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ के एक फैसले के विरोध में यह बात कही। उन्होंने कहा कि यह महज एक ड्रामा है। इसकी निंदा की जानी चाहिए।
फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर अपना मत प्रस्तुत करते हुए अटॉर्नी जनरल ने जजों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जमानत की शर्तों के बारे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी वेबसाइट पर अपलोड किया जाना चाहिए। यह फैसला न करवाल जुडिशल एकेडमी में पढ़ाया जाए, बल्कि इसे ट्रायल कोर्ट में हाईकोर्ट के समक्ष भी रखा जाए। भर्ती परीक्षा में भी महिला संवेदनशीलता का एक हिस्सा होना चाहिए।
वेणुगोपाल ने बताया कि शीर्ष अदालत में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता और शिकायत निवारण समिति है। एक दस्तावेज भी है, जिसे पूर्वी एशिया के सभी जजों ने बैंकॉक में तैयार किया था। इसमें जमानत देते समय अपनाए जाने वाले सिद्धांतों को रखा गया था। इस पर कोर्ट ने कहा – ‘यह सभी सामग्री अदालत के सामने रखी जाएं। जमानत की शर्तें विवेक पर आधारित होती हैं और इसे कहां तक ले जाया जा सकता है, इन पहलुओं पर जजों को शिक्षित करने की ज़रूरत है। हम इस पर विचार करके आदेश जारी करेंगे। यौन अपराध के आरोपियों को जमानत देने में क्या-क्या दिशानिर्देश हों, सभी पक्षकार इस बारे में लिखित सुझाव दें।’
आपको बता दें कि 30 जुलाई को हाई कोर्ट की इंदौर पीठ ने छेड़छाड़ के एक आरोप को जमानत देते हुए शर्त लगाई थी कि वह रक्षाबंधन के दिन पीड़िता के घर जाकर राखी बंधवाएगा। एडवोकेट अपर्णा भट्ट समय सहित 9 महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में जज द्वारा ऐसी अजीब शर्त रखने की शिकायत की थी। याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि ऐसी शर्त न केवल अपराध की गंभीरता को कम करती है, बल्कि पीड़िता की मानसिक परेशानी भी बढ़ाती है। उन्होंने कहा कि कानून के अनुसार पीड़ित को आरोपी से दूर रखना चाहिए। लेकिन इस मामले में हाईकोर्ट ने आरोपी को अपराध के स्थान पर, महिला के घर, जाने का आदेश दे दिया। ऐसे में पीड़ित पर क्या बीतेगी? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को अपना मत पेश करने को कहा था।