हाइलाइट्स:
ओआईसी, यानी ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों ने कश्मीर के मुद्दे पर एक आपातकालीन की है।
ओआईसी कॉन्टैक्ट ग्रुप की इस बैठक में भारत को लेकर जिस तरह के प्रस्ताव पारित किए गए हैं, वे निस्संदेह चिंता पैदा करने वाले हैं।
मुस्लिम देशों के सबसे बड़े मंच ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन, यानी ओआईसी के कॉन्टैक्ट ग्रुप ने 22 जून को कश्मीर के मुद्दे पर आपातकालीन बैठक की। जम्मू-कश्मीर को लेकर 1994 में बनाए गए ओआईसी के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की इस बैठक में भारत को लेकर कई प्रस्ताव पारित किए गए। बैठक में अजरबैजान, नाइजीरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब और तुर्की शामिल हुए। ओआईसी के महासचिव डॉक्टर यूसुफ अल-ओथइमीन ने कहा कि ओआईसी इस्लामी समिट, विदेश मंत्रियों की काउंसिल और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार जम्मू-कश्मीर के मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान निकालने को लेकर प्रतिबद्ध है।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई इस बैठक में ओआईसी के सदस्य देशों ने भारत द्वारा 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने की कड़ी आलोचना की। यही नहीं, बैठक में भारत के खिलाफ कड़ा रूख अख्तियार करते हुए कहा गया कि ओआईसी कश्मीर के लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करते हैं। इतना ही नहीं, बैठक में उस रिपोर्ट का भी समर्थन किया गया है, जिसमें भारत पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है। बता दें कि पाकिस्तान हमेशा भारत पर मानवाधिकार हनन का आरोप लगाता रहा है और उसकी पुरजोर कोशिश रही है कि ओआईसी भी इस मामले में उसका साथ दे। खास तौर पर, भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनु्च्छेद 370 को हटाने के बाद से तो पाकिस्तान की यह मांग थी कि ओआईसी भारत के खिलाफ कड़ा रूख अपनाए। हालांकि उस समय ओआईसी ने तटस्थ रूख अपनाते हुए कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया था। लेकिन, अब पाकिस्तान की चाल में फंसते हुए इस संगठन ने कश्मीर को लेकर बयान जारी किया है। हालांकि इस संगठन के अगुवा सऊदी अरब ने कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की।
ओआईसी के भारत विरोधी बयान के बाद सऊदी अरब की भूमिका को लेकर भी कई तरह की बातें हो रही हैं। यह माना जाता है कि ओआईसी में सऊदी अरब की इच्छा के विरुद्ध कोई काम नहीं हो सकता। अभी तक सऊदी अरब का रुख भारत के पक्ष में ही रहा है। गत 5 अगस्त के बाद सऊदी ने कश्मीर को लेकर कोई नकारात्मक टिप्पणी नहीं की थी। संयुक्त अरब अमीरात और खाड़ी के दूसरे कई देशों ने भी इसे भारत का अंदरूनी मसला बताया था। यानी, तब सऊदी और यूएई ने पाकिस्तान की अपेक्षा भारत को महत्व दिया था। लेकिन ओआईसी की बैठक में जो रवैया अपनाया गया, उसे कम-से-कम भारत के पक्ष में तो कतई नहीं कहा जा सकता।