शास्त्रीय संगीत के प्रख्यात गायक पंडित जसराज का निधन नहीं रहे। मेवाती घराने से ताल्लुक रखने वाले पंडित जसराज का 17 अगस्त को अमेरिका में 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने अमेरिका के न्यू जर्सी में अंतिम सांस ली। हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले इस महान गायक के निधन से संगीत जगत में शोक की लहर है।
यह हम सब के लिए यह बड़े फक्र की बात है कि पंडित जसराज हरियाणा के फतेहाबाद जिले के पीली मंदोरी गांव के रहने वाले थे। गांव में उनका पैतृक मकान है जिसमें उनके भतीजे रामकुमार, दलीप, जगदीश और सुंदर रहते हैं। पंडित जसराज का परिवार 4 पीढ़ियों से शास्त्रीय संगीत से जुड़ा है। पंडित जसराज के पिता पंडित मोतीराम मेवात घराने के प्रसिद्ध गायक थे और हैदराबाद निजाम के गवैया रहे थे। जब पंडित जसराज का परिवार गांव से हैदराबाद गया, तब उनकी उम्र मात्र 7 साल थी। उन्हें घर और गांव में जसिया के नाम से पुकारा जाता था। जब 2003 में वे गांव आए, तो अफसोस जताते हुए कहा था कि यहां उन्हें जसिया कहकर पुकारने वाला कोई नहीं मिला। उन्होंने कहा कि काश! कोई उन्हें जसिया कहकर पुकारे।
युवा क्लब के पूर्व प्रधान सतपाल सिंह नायक के अनुसार, अपनी व्यस्ताओं के चलते पंडित जी गांव आ तो नहीं पाते थे, लेकिन उन्हें अपनी जन्मभूमि से लगाव बहुत था। 27 साल पहले 30 सितंबर 2003 को उनके सम्मान में युवाओं ने गांव में रक्तदान शिविर लगाया था। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जब पंडित जसराज गांव में पहुंचे, तो गाड़ी से उतरते ही सबसे पहले उन्होंने गांव की मिट्टी को चूमा था। अभी गांव में उनके पिता पंडित मोतीराम के नाम से लाइब्रेरी चल रही है। पंडित जसराज के नाम से भी गांव में पार्क का निर्माण किया गया है। उनके निधन की खबर सुनकर पूरा गांव सदमे में है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, 15 दिन पहले ही उन्होंने वीडियो कॉल करके अपने गांव को देखा था और गांव की तरक्की को देखकर काफी खुशी जाहिर की थी। वे निकट भविष्य में गांव आने का कार्यक्रम भी बना रहे थे। आपको बता दें कि पंडित जसराज अंतिम बार जनवरी 2014 में अपने गांव आए थे। उस समय गांव में उनका 84 वां जन्मदिन मनाया गया था। इससे पहले 2005 में उनकी बेटी दुर्गा गांव में आई थी।
गौरतलब है पंडित जसराज शास्त्रीय संगीत के स्वर्णिम दौर के आखिरी गायक थे। शास्त्रीय गायकी को एक अलग अंदाज और पहचान देने वाले पंडित जसराज ने ओमकारनाथ ठाकुर, उस्ताद गुलाम अली खां, अमीर खान साहब, पंडित भीमसेन जोशी, पंडित कुमार गंधर्व, गिरिजा देवी और बेगम अख्तर आदि की परंपरा को आगे बढ़ाया। वे अभी भी अमेरिका और कनाडा में संगीत की शिक्षा दे रहे थे।
कहते हैं कि शुरू में पंडित जसराज तबला बजाते थे। वे अपने बड़े भाई और जानेमाने गायक पंडित मनीराम को संगत देते थे। एक बार लाहौर की एक संगीत सभा में गायकों के बैठने का प्रबंध तो मंच पर कर दिया गया, लेकिन संगतकारों को मंच से नीचे बैठाया गया। यह बात पंडितजी को काफी अखरी और उसी दिन से उन्होंने तबला वादन छोड़कर गाना शुरू कर दिया। इसके बाद उन्होंने उस संगीत सभा में भी फिर कभी संगत नहीं की। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने तबला छोड़ने का फैसला पंडित कुमार गंधर्व के कहने पर लिया था। यह भी बहुत कम लोग जानते हैं कि पंडित जसराज मशहूर फिल्मकार वी. शांताराम के दामाद थे।
पंडित जसराज ने पूरी दुनिया में शास्त्रीय संगीत की धूम मचाई। उनके द्वारा गाए गए रागों और भजनों को यूट्यूब पर भी खूब पसंद किया जाता है और भारी मात्रा में लोग उनके गानों का आनंद लेते हैं। पर आपको बता दें कि क्लासिकल म्यूजिक के इतने बड़े गायक होने के बावजूद उन्होंने फिल्मों में भी गाने गाए थे।
बॉलीवुड में उन्होंने प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआत साल 1966 में आई फिल्म लड़की सह्याद्रि की थी। डायरेक्टर वी शांताराम की इस फिल्म में उन्होंने वंदना करो भजन को राग अहीर भैरव में गाया था। उनका दूसरा गाना 1975 में आई फिल्म बीरबल माय ब्रदर के लिए था। इसके बाद उन्होंने फिल्म 1920 के लिए एक रोमांटिक गाना गाया, जो उनके स्टाइल से कुछ हटकर था। सन 2008 में आई अदा शर्मा और रजनीश दुग्गल की इस फिल्म के उनके गाने “वादा तुमसे है वादा” के काफी चर्चे हुए थे। इस गाने को अदनान सामी ने कंपोज किया था।
संगीत के क्षेत्र में विशेष उपलब्धियों के लिए पंडित जसराज को नाटक अकदमी, पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभुषण जैसे अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।