कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 ( “POSH Act”) एक विशेष कानून है जिसे हमारे देश में महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल बनाने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था।
पॉश अधिनियम (POSH Act) की धारा 4 के अनुसार :
प्रत्येक कार्यस्थल नियोक्ता, लिखित आदेश द्वारा, “आंतरिक शिकायत समिति” के रूप में जानी जाने वाली एक समिति का गठन करेगा, जिसमें कार्यस्थल से एक वरिष्ठ स्तर की महिला शामिल होगी, जो प्रिज़ाइडिंग ऑफ़िसर होगी, ICC (आंतरिक शिकायत समिति) में कम से कम 50% महिलाएं होनी चाहिएं। एक या दो मेम्बर क़ानूनी पृष्ठभूमि के हों। एक गैर-सरकारी संगठनों से, यानी बाहरी सदस्य हो जिसने किसी एनजीओ या महिलाओं से सम्बंधित किसी संगठन में कार्य किया हो।
यह कमेटी स्टैंडिंग कमेटी होती है। इसमें, यानी ICC में सदस्य को नियोक्ता द्वारा उनके नामांकन की तारीख से 3 वर्ष तक की अवधि के लिए नामित किया जाता है। इस कमेटी के सदस्यों आदि की जानकारी वेबसायट पर उपलब्ध होनी चाहिए।
अब बात करते हैं हाल के महिला पहलवानों के आरोपों की। हम जानते हैं कि अगर शिकायत उस डिपार्टमेंट के टॉप बॉस के ख़िलाफ़ हो तो इस तरह की कमेटी में कभी न्याय नहीं होता।क्योंकि टॉप बॉस के ख़िलाफ़ जाने की हिम्मत कोई नहीं करता। इसलिए ऐसे मामलों में किसी दूसरे डिपार्टमेंट की ICC से जाँच करवानी चाहिए।
अब सवाल ये है कि क्या हाल में जाँच के लिए जो कमेटी बनाई गई थी यह POSH Act के तहत बनाई गई थी?
अगर हम कुश्ती संघ की वेबसायट पर जाते हैं वो वहां एक सेक्शूअल हरैस्मेंट कमेटी के सदस्यों के नाम दिए हैं, जिनमें एक सदस्य साक्षी मलिक भी हैं जो अभी कुश्ती संघ के अध्यक्ष के विरुद्ध धरने पर बैठी हैं। यदि इस कमेटी के नामों पर ग़ौर करें और पॉश एक्ट के नियमों को देखें तो स्पष्ट है कि यह आँखों में धूल झोंकने वाला और खानापूर्ति वाला काम है। हालाँकि, सेक्शूअल हरैस्मेंट के लिए अलग से कमेटी होनी चाहिए, जिसमें पचास प्रतिशत सदस्य महिलाएंहों और उसकी अध्यक्ष भी महिला ही हो, जबकि स्क्रीन शॉट में देख सकते हैं कि कमेटी में सिर्फ एक महिला है और वह भी जंतर–मंतर धरने पर है और कमेटी का अध्यक्ष पुरुष है। कुश्ती संघ ने POSH Act को बिल्कुल दरकीनार कर लिपापोती के लिए एक joint commetee बना दी, जोकि क़ानून की अवहेलना है। यह कमेटी ही दर्शाती है कि कुश्ती संघ के अध्यक्ष की नीयत और नीति में खोट है।
कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृज भूषण सिंह सांसद भी हैं। यानी देश की उस पंचायत (संसद) के सदस्य हैं जहां क़ानून बनते हैं। यह भी नहीं है कि वे पहली दफ़ा सांसद चुन कर आए हैं। अब अगर संवैधानिक पद पर बैठा एक व्यक्ति ऐसी ग़लती करता है तो उसे भूल नहीं शातिराना दिमाग़ ही कहना उचित होगा। सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि 2013 में संसद में जब यह POSH Act पास हुआ था, तो माननीय सांसद जी उस सदन के सदस्य थे। यानी वे इस क़ानून को पास करवाने वालों में से थे! इसका मतलब यही निकलता है कि वे ख़ुद को सचमुच इतना बड़ा बाहुबली समझते हैं कि देश की संसद में बने क़ानून को भी कुछ नहीं समझते और न उसकी क़द्र करते हैं! POSH Act-2013 कांग्रेस सरकार में बना था, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि राष्ट्रवादी पार्टी वाले 2014 से पहले बने विधान को ही नहीं मानते हों?
- राकेश सिंह सांगवान