हरियाणा सरकार ने अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच तेज़ कर दी है। मामलों की जांच की धीमी रफ्तार को देखते हुए मुख्य सचिव केशनी आनंद अरोड़ा ने 11 सितंबर को सभी विभागों के मुख्य सतर्कता अधिकारियों की बैठक बुलाई है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, इस बैठक में लंबित मामलों की जांच की समीक्षा की जाएगी। आपको बता दें कि इनमें से अनेक मामले 2 से 5 साल पुराने हैं और उनकी जांच अभी तक बीच में लटकी हुई है और सरकार इससे खुश नहीं है। इसलिए जांच की रफ्तार बढ़ाने के लिए समीक्षा बैठक की जा रही है। यह भी पता चला है कि ज़्यादातर विभाग भी जांच में सहयोग नहीं कर रहे। वे मुख्य सतर्कता अधिकारियों को आरोपों के बारे में विभागीय टिप्पणियां मुहैया नहीं करवा रहे।
अगर विभागों की बात करें तो एचएसआईआईडीसी, वाणिज्य एवं उद्योग विभाग में 10, स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा व अनुसंधान विभाग में 5, सहकारिता विभाग में 12, गृह विभाग में 3, कृषि विभाग में 15, ऊर्जा विभाग में 10, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग में 9,
विकास एवं पंचायत विभाग में 31, सिंचाई विभाग में 4, राजस्व विभाग में 2 और शहरी स्थानीय निकाय में भ्रष्टाचार के 9 मामले लंबित हैं।
इन विभागों में भ्रष्टाचार के जो प्रमुख आरोप लगे हैं, उनमें फर्म से मिलीभगत कर खदान क्षेत्र चलाने, रिश्वत लेने, बिल्डर्स से मिलीभगत कर जमीन अधिग्रहण न करने, एक ही परिवार के सदस्यों को प्लॉट आवंटन करने, आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने और सरकारी वाहन का दुरुपयोग करने जैसे आरोप शामिल हैं। जिनके अलावा जीएसटी घोटाला, ई-नीलामी में कम दरों पर प्लॉट छोड़ने, फर्जी उत्पादन दिखाने, अपने फायदे के लिए मरीजों को महंगी व बाहर की दवाई लिखने, फर्जी व झूठे टीए-डीए बिल लेने, जनशिकायतों का रिकॉर्ड नष्ट करने और कर्मचारियों की गलत तरीके से नियुक्ति करने जैसे आरोप शामिल हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश के 10 विभागों के 110 मामलों की जांच लंबे समय से लटकी हुई है।