
– डॉ. रेनू यादव
कचरे से धन का निर्माण: हरित क्रांति की दिशा में कदम
आज पर्यावरणीय क्षरण एक गंभीर चुनौती बन चुका है, और इससे निपटने के लिए वैज्ञानिक समुदाय नए और टिकाऊ समाधान तलाशने में जुटा है। ऐसे में चावल-आधारित बायोप्लास्टिक (Rice based Bioplastic) में एक आशा की किरण दिखाई देती है। चावल के प्रसंस्करण से निकलने वाली कृषि-उपज, जैसे भूसी और पराली का उपयोग करके इन्हें बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक (Biodegradable plastic) में बदला जा रहा है। यह न केवल पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक है, बल्कि कृषि (Agriculture) कचरे को मूल्यवान संसाधन में बदलने की क्षमता भी रखता है। हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में पराली जलाने से पैदा होने वाली वायु प्रदूषण (Pollution) की गंभीर समस्या के स्थाई हल में भी यह तकनीक बड़ा कारक साबित हो सकती है।
बायोप्लास्टिक में चावल की भूमिका
चावल, जो दुनिया का एक प्रमुख अनाज है, प्रसंस्करण के दौरान बड़े पैमाने पर उप-उत्पाद पैदा करता है। इनमें चावल की भूसी, चावल के कुल भार का लगभग 10% होती है। अक्सर बेकार समझकर फेंकी जाने वाली यह भूसी प्रोटीन और पॉलीसैकेराइड्स से भरपूर होती है, जो बायोपॉलिमर के निर्माण में इस्तेमाल हो सकती है। हाल के शोध बताते हैं कि प्लास्टिसाइज़र और थर्मो-मैकेनिकल तकनीकों का उपयोग करके इसे टिकाऊ और पर्यावरण (Environment) के अनुकूल बायोप्लास्टिक में बदला जा सकता है।
बायोप्लास्टिक प्राकृतिक स्रोतों, जैसे मक्का, गन्ना और अब चावल से बनाए जाते हैं। ये पारंपरिक प्लास्टिक की तुलना में अधिक पर्यावरण अनुकूल हैं, क्योंकि ये प्राकृतिक रूप से विघटित होकर हानिरहित यौगिकों में परिवर्तित हो जाते हैं। इसके विपरीत, पारंपरिक प्लास्टिक सैकड़ों वर्षों तक पर्यावरण में बने रहते हैं, जिससे प्रदूषण और जैव विविधता को नुकसान होता है।

पारंपरिक प्लास्टिक की समस्या
पेट्रोकेमिकल्स से बना पारंपरिक प्लास्टिक आधुनिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। लेकिन इससे होने वाले नुकसान भी गंभीर हैं। यह प्लास्टिक जल्दी नष्ट नहीं होता, जिससे यह बड़े पैमाने पर कचरे के रूप में जमा होता जाता है। समुद्रों में इसके कारण समुद्री जीवों और पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर खतरा होता है। इसके अलावा, माइक्रोप्लास्टिक के छोटे-छोटे कण पीने के पानी और खाने में पाए जाने लगे हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। इनके उत्पादन के दौरान ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु परिवर्तन के संकट को और बढ़ावा देता है।
चावल–आधारित बायोप्लास्टिक के विकास के तरीके
चावल-आधारित बायोप्लास्टिक बनाने के लिए कई विधियां अपनाई जा रही हैं:
1. स्टार्च आधारित बायोप्लास्टिक: चावल के स्टार्च को ग्लिसरॉल जैसे प्लास्टिसाइज़र के साथ मिलाकर लचीली बायोडिग्रेडेबल फिल्म तैयार की जाती है।
2. सेल्यूलोज आधारित बायोप्लास्टिक: चावल की पराली से सेल्यूलोज निकालकर इसे सेल्यूलोज एसीटेट में बदला जाता है, जो विभिन्न उपयोगों के लिए उपयुक्त होता है।
3. काइटोसैन आधारित बायोप्लास्टिक: चावल की भूसी से निकाले गए काइटोसैन का उपयोग एंटीमाइक्रोबियल गुणों वाले खाद्य पैकेजिंग में किया जा सकता है।
4. सूक्ष्मजीवीय किण्वन: चावल के कार्बोहाइड्रेट्स को बैक्टीरिया की मदद से पॉलीहाइड्रॉक्सीएल्केनोएट्स (PHA) में बदला जाता है, जो बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर हैं।
5. संयोजन पॉलिमर: चावल आधारित पॉलिमर को PLA जैसे सिंथेटिक पॉलिमर के साथ मिलाकर उनकी मजबूती और उपयोगिता बढ़ाई जाती है।
चावल–आधारित बायोप्लास्टिक के फायदे
चावल-आधारित बायोप्लास्टिक इन समस्याओं को कम करने की दिशा में प्रभावी समाधान के रूप में सामने आया है। इनके कई फायदे हैं:
1. बायोडिग्रेडेबल: ये प्राकृतिक रूप से कार्बन डाइऑक्साइड, पानी और अन्य जैविक यौगिकों में बदल जाते हैं, जिससे लंबे समय तक कचरा जमा नहीं होता।
2. नवीकरणीय: चावल के अवशेषों से बनने के कारण ये पेट्रोलियम आधारित संसाधनों पर निर्भरता कम करते हैं।
3. पर्यावरण-अनुकूल: चावल की भूसी और पराली का उपयोग करके न केवल कृषि कचरे को कम किया जा सकता है, बल्कि कम्पोस्टिंग के जरिए ये मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ा सकते हैं।
4. ऊर्जा-कुशल: पारंपरिक प्लास्टिक की तुलना में इनके निर्माण में कम ऊर्जा लगती है, जिससे इनका पर्यावरणीय प्रभाव और कम हो जाता है।
विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग
चावल-आधारित बायोप्लास्टिक का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में हो रहा है:
खाद्य पैकेजिंग: ये बेहतर बैरियर गुण प्रदान करते हैं और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हैं।
कृषि: बायोडिग्रेडेबल मल्चिंग फिल्म मिट्टी की नमी को बनाए रखती है और फसल कटाई के बाद स्वाभाविक रूप से विघटित हो जाती है।
चिकित्सा उपकरण: सर्जिकल सुई और दवाओं की वितरण प्रणालियों में इनका उपयोग सुरक्षित और जैव-संगत है।
उपभोक्ता उत्पाद: खिलौने, कटलरी और अन्य घरेलू वस्तुएं बनाने में इनका उपयोग बढ़ रहा है।
3डी प्रिंटिंग: यह एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग में पारंपरिक प्लास्टिक का टिकाऊ विकल्प बन रहे हैं।
बायोप्लास्टिक को अपनाने में चुनौतियां
चावल-आधारित बायोप्लास्टिक के तमाम फायदों के बावजूद इसे अपनाने में कुछ बाधाएं भी हैं:
उच्च उत्पादन लागत: पारंपरिक प्लास्टिक की तुलना में बायोप्लास्टिक का उत्पादन अभी महंगा है।
यांत्रिक सीमाएं: ये पारंपरिक प्लास्टिक की तरह मजबूत और टिकाऊ नहीं होते।
खाद्य सुरक्षा का मुद्दा: इनका उत्पादन खाद्यान्न आधारित कच्चे माल पर निर्भर करता है, जिससे खाद्य संकट पैदा होने की आशंका रहती है।
कचरे का प्रबंधन: बायोप्लास्टिक के पूर्ण रूप से विघटित होने के लिए विशेष परिस्थितियों (जैसे नियंत्रित तापमान और पीएच स्तर) की आवश्यकता होती है।
वैश्विक दृष्टिकोण और बाजार रुझान
यूरोप ने बायोप्लास्टिक को अपनाने में अग्रणी भूमिका निभाई है। 2006 से 2018 के बीच यहां लैंडफिल में प्लास्टिक कचरे को 44% तक कम किया गया है। वहीं एशिया, जहां सालाना 132 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है, अभी इस दिशा में पीछे है। 2021 में वैश्विक बायोप्लास्टिक बाजार का मूल्य 9 बिलियन डॉलर से अधिक था, जो 18% की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है। सामग्री विज्ञान में नवाचार और सहायक नीतियां इस वृद्धि को और तेज कर सकती हैं।
आगे की राह

चावल-आधारित बायोप्लास्टिक को अपनाने के लिए अनुसंधान, ढांचागत विकास और जन-जागरूकता में निवेश जरूरी है। उत्पादन लागत को कम करना और यांत्रिक गुणों में सुधार करना इसकी व्यापक स्वीकृति के लिए महत्वपूर्ण होगा। शिक्षा और जागरूकता अभियान उपभोक्ताओं को टिकाऊ विकल्पों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रही दुनिया के लिए चावल-आधारित बायोप्लास्टिक एक आशा की किरण हैं। कृषि कचरे को मूल्यवान संसाधन में बदलने की यह पहल विज्ञान की शक्ति को दर्शाती है। अगर नवाचार जारी रहा, तो पृथ्वी को प्लास्टिक-मुक्त ग्रह बनाने का सपना जल्द ही हकीकत बन सकता है।
(लेखिका पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ में सीनियर डेमोंस्ट्रेटर हैं।)