बख़्तावर, बेनज़ीर और कारियों के क़ब्रिस्तान की आहोबुका (असलम ख़्वाजा) :
लेखक असलम ख़्वाजा के कॉलम पाकिस्तान के अख़बारों में छपते रहे हैं जिन में वे ख़ुद को ‘आवारागर्द’ कहते हुए अपनी बात रखते हैं। उन की इजाज़त से उन के इस लेख को ज़रूरत के मुताबिक़ थोड़ी-बहुत सम्पादकीय छूट लेते हुए उर्दू से देवनागरी में लिप्यन्तरित कर के ‘सारी दुनिया’ में छापा जा रहा है। इस बार एक ऐसी सामाजिक कुरीति की बात हो रही है जो सरहद के उस पार भी महिलाओं के जीने के अधिकार पर उतना ही बड़ा कुठाराघात है जितना कि इस पार – यानी इज़्ज़त के नाम पर महिलाओं की हत्या – ऑनर किलिंग। मूल उर्दू: असलम ख़्वाजा || लिप्यंतरित भावानुवाद : रमणीक मोहन
Sarhad Paar Se 8