सरकार पर लगाया सबूतों की अनदेखी का आरोप

सारी दुनिया। सीनियर वायरोलॉजिस्ट और देश में कोरोना से जंग की रणनीति तैयार करने वाली सरकारी समिति के मुखिया डॉ. शाहिद जमील ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। शाहिद जमील केंद्र सरकार की ओर से बनाए उस खास सलाहकार ग्रुप के मुखिया थे, जिसके ऊपर वायरस के जीनोम स्ट्रक्चर की पहचान करने की जिम्मेदारी थी। उनके इस्तीफे के पीछे सरकार के ढुलमुल रवैये और सबूतों की अनदेखी करने को मुख्य कारण माना जा रहा है। भारत के सार्स-कोविड जीनोम कंसोर्शियम (INSACOG) के वैज्ञानिक सलाहकार मंडल के चीफ और अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंस के डायरेक्टर डॉ. शाहिद जमील ने खुद इसकी जानकारी अंतरराष्ट्रीय न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को दी है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, उन्होंने कुछ दिन पहले भी एजेंसी से कहा था कि भारत में अधिकारी सेट पॉलिसी के तहत काम कर रहे हैं और सबूतों की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं।
लंबे समय से सरकारी उपेक्षा झेल रहे डॉ. जमील ने भारत में कोरोना के बढ़ते प्रकोप और इससे निपटने की सरकार की नीतियों पर एक लेख लिखा था। न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखे इस लेख में उन्होंने कहा था कि भारत के वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर पॉलिसी बनाने को लेकर अड़ियल रवैये का सामना कर रहे हैं। कोविड मैनेजमेंट को लेकर देश में कम टेस्टिंग, धीमी रफ्तार से वैक्सीनेशन और वैक्सीन की कमी जैसी कई तरह की समस्याएं हैं। इसके अलावा हेल्थकेयर वर्क फोर्स की भी बहुत अधिक जरूरत है।
उन्होंने लिखा था कि इन सभी उपायों को लेकर उन्हें भारत के अन्य वैज्ञानिकों का काफी समर्थन मिल रहा है, लेकिन तथ्यों के आधार पर नीति बनाने को लेकर वे सरकार के अड़ियल रवैये का सामना कर रहे हैं। 30 अप्रैल को 800 से ज्यादा भारतीय वैज्ञानिकों ने पत्र लिखकर प्रधानमंत्री से अपील की थी कि उन्हें डाटा मुहैया कराया जाए, ताकि वे वायरस के बारे में अंदाजा लगाने और उसे रोकने के लिए अध्ययन कर सकें। उन्होंने लिखा कि डाटा के आधार पर फैसला न लेना अपने आप में एक आपदा है, क्योंकि भारत में महामारी नियंत्रण से बाहर हो गई है। हम जो जानें गंवा रहे हैं, वो कभी न मिटने वाला जख्म का निशान दे जाएंगी।
पहले ही चेतावनी दे दी थी सरकार को
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, शांति स्वरूप भटनागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार 2020 के विजेता डॉ. जमील ने मार्च में ही चेतावनी दे दी थी कि भारत में नया और ज्यादा संक्रामक वायरस फैल रहा है। इस B.1.617 वैरिएंट की वजह से ही देश कोरोना की सबसे बुरी लहर से गुजर रहा है। जब न्यूज एजेंसी ने पूछा कि सरकार इन तथ्यों पर ज्यादा तेजी से काम क्यों नहीं कर रही है, तो डॉ. जमील ने कहा था कि हमें यह चिंता है कि अधिकारियों ने पॉलिसी सेट कर ली है और इसी के चलते वे सबूतों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
अपने लेख में उन्होंने मोदी सरकार को साफ-साफ सलाह दी थी कि वह वैज्ञानिकों की बात सुने और पॉलिसी बनाने में जिद्दी रवैया छोड़े। उन्होंने सरकार का ध्यान कोरोना के नए वैरिएंट की तरफ ध्यान दिलाया और लिखा कि एक वायरोलॉजिस्ट के तौर पर मैं पिछले साल से ही कोरोना और वैक्सीनेशन पर नजर बनाए हुए हूं। मेरा मानना है कि कोरोना के कई वैरिएंट्स फैल रहे हैं और ये वैरिएंट्स ही कोरोना की अगली लहर के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।
डॉ. जमील के इस्तीफे से एक बार फिर सरकार की अकर्मण्यता और कोरोना के कहर से देश के लोगों को बचाने की मंशा पर सवालिया निशान लग गया है। उनके आरोपों पर गौर करें तो पाएंगे कि सरकार के स्तर पर कोरोना से निपटने को लेकर गंभीरता का नितांत अभाव है। लोगों को बचाने के लिए फौरी कदम उठाने, संसाधन जुटाने या आपातकालीन हालात को काबू में करने की बजाए सरकार सिर्फ लीपापोती कर रही है। मौत के आंकड़ों को छुपाने तथा संसाधनों की कमी और सरकार के फेल्योर से ध्यान हटाने के लिए ही सारा जोर लगाया जा रहा है, जबकि लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।
वरिष्ठ वकील भी दे चुके हैं इस्तीफा
महामारी के प्रति उच्च स्तर पर अधिकारियों के गैरजिम्मेदाराना रवैये को लेकर विशेषज्ञों के इस्तीफे का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले 5 राज्यों के चुनावों में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन न करवाने को लेकर चुनाव आयोग से मतभेदों के चलते वरिष्ठ वकील मोहित डी राम ने भी इस्तीफा दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों में आयोग की पैरवी करने के लिए तय वकीलों के पैनल में शामिल मोहित डी राम ने अपने इस्तीफे में लिखा था, “चुनाव आयोग की मौजूदा कार्यशैली और मेरे मूल्यों के बीच तालमेल नहीं बैठ रहा है। इसलिए मैं पद से इस्तीफा दे रहा हूं।”