‘दयाशंकर की डायरी’ नाटक ने प्रस्तुत की आर्थिक तंगी और सपनों के टूटने की व्यथा


रोहतक, 22 मार्च। सप्तक कल्चरल सोसाइटी और पठानिया वर्ल्ड कैंपस के साप्ताहिक घर फूंक थियेटर फेस्टिवल में इस बार पटियाला के ‘द लेबोरेटरी थियेटर ग्रुप’ के नाटक ‘पार्क’ और ‘सप्तक कल्चरल सोसायटी’ के नाटक ‘दयाशंकर की डायरी’ का मंचन किया गया। मानव कौल के लिखे नाटक पार्क का निर्देशन शोभित मिश्रा ने किया। इसमें विस्थापन के दर्द और अपने स्थान से होने वाले लगाव को दिखाने के साथ-साथ कई समस्याओं को बहुत ही अच्छे से प्रस्तुत किया गया। नाट्य संध्या की दूसरी प्रस्तुति ‘दयाशंकर की डायरी ‘सुरेन्द्र शर्मा द्वारा निर्देशित किया गया। उन्हीं के द्वारा अभिनीत नादिरा जहीर बब्बर की इस कृति में एक नाकाम एक्टर की कहानी के माध्यम से आर्थिक तंगी और सपनों के टूटने की व्यथा को प्रस्तुत किया गया। नाटकों का मंचन स्थानीय किशनपुरा चौपाल में हुआ।

‘पार्क’ नाटक में पूरा समय अपनी-अपनी परेशानियों से तंग आए तीन लोग एक पार्क में बैठने की जगह के लिए झगड़ते रहते हैं। एक खास बेंच पर बैठने के लिए वे अपने तरह-तरह के तर्क देते हैं, जिनसे अनेक हास्यास्पद परिस्थितियां बनती हैं। पहला व्यक्ति जिस बेंच पर बैठा है, उस पर दूसरा व्यक्ति लेटना चाहता है, क्योंकि उसने बहुत खा लिया है और उसका सोना बहुत जरूरी है। काफी झगड़े के बाद वह उस बेंच को छोड़ने पर राजी होता है और दूसरे बेंच पर बैठ जाता है। तभी एक और व्यक्ति उस बेंच के लिए दावा ठोंक देता है। वह इसके लिए अनेक तर्क देता है, जबकि पहले बेंच से उठाया गया व्यक्ति किसी भी हाल में वहां से हटना नहीं चाहता। हास्य-व्यंग्य से भरपूर इस तकरार के बीच काश्मीर, फिलिस्तीन और अन्य स्थानों से जबरदस्ती हटाए गए लोगों के दर्द को भी बेहद खूबसूरत तरीके से अभिव्यक्ति किया गया। नाटक में हैपी, दलजीत और शोभित ने अपने जबरदस्त अभिनय से पूरा समय दर्शकों को बांधे रखा। अंकप्रीत ने बैकस्टेज की जिम्मेदारी संभाली।
एकल नाटक दयाशंकर की डायरी एक ऐसे युवा अभिनेता की कहानी है, जो एक्टर बनने मुंबई आता है लेकिन मजबूरी में एक ऑफिस में क्लर्की करने को विवश हो जाता है। थोड़ी सी पगार में घर वालों की ज़रूरतों को पूरी करते रहने के कारण वह हमेशा तंग हाल रहता है। ऊपर से एक्टर न बन पाने का दर्द उसे टीसता रहता है। दफ्तर के माहौल से दुखी दयाशंकर को इसी बीच अपने साहब की बेटी से इकतरफा प्यार हो जाता है। वह उससे शादी करने का सपना देखने लगता है, जबकि लड़की अपने धनवान दोस्त से शादी कर लेती है। इससे दयाशंकर टूट जाता है और पागल हो जाता है। नाटक में डॉ. सुरेन्द्र शर्मा ने काफी भावपूर्ण अभिनय किया। संतूर पर संगीत अमित शर्मा ने दिया।
इस अवसर पर डॉ. रवि मोहन, डॉ. नक़वी, वाई पी छाबड़ा, मनीषा हंस, डॉ. राजेन्द्र शर्मा, नीलम रानी, रिया शर्मा, एंकर प्रिंस, अनिल सैनी, पंकज शर्मा, सुजाता, शक्ति सरोवर त्रिखा, जगदीप जुगनू, रवि रविन्द्र, सिद्धार्थ भारद्वाज, रिंकी बतरा और सप्तक के सचिव अविनाश सैनी विशेष रूप से उपस्थित रहे।