– कर्ण की बहादुरी और दानवीरता को भी किया रेखांकित
– कुंती की पीड़ा भी आई सामने
– संडे थियेटर का नाम बदलकर रखा ‘घर-फूंक थियेटर फेस्टिवल
– अगला नाटक ‘तांडव’ दिल्ली की टीम करेगी प्रस्तुत
रोहतक, 18 अक्टूबर। ‘मेरा कसूर क्या था मां, जो पैदा होते ही परित्याग कर दिया?…और आज कैसे आपको अपने ज्येष्ठ पुत्र की याद आ गई? तब कहां थीं आप, जब सूतपुत्र कहकर गुरु द्रोण ने मेरा अपमान किया… जब क्षत्रिय न होने के कारण मुझे द्रोपदी के स्वयंवर में भाग लेने से रोका गया…. जब अर्जुन ने सरेआम मेरे पुत्र सुदामन का वध किया।’ महाभारत के सबसे चर्चित पत्रों में से एक दानवीर कर्ण ने युद्ध की पूर्वसंध्या पर उन्हें मनाने आई माता कुंती से जब ये सवाल किए, तो उनके पास इनका कोई जवाब नहीं था। सूर्यपुत्र की इसी पीड़ा को ‘घर-फूंक थियेटर फेस्टिवल’ में इस बार के नाटक महारथी में दिखाया गया। सप्तक रंगमंडल, पठानिया वर्ल्ड कैंपस, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और सोसर्ग के संयुक्त तत्वावधान में हुए इस नाटक ने जहां सूतपुत्र, यानी शुद्र होने के कारण जीवनभर अपमान झेलने की कर्ण की व्यथा को दर्शाया, वहीं उनके पराक्रम और विशाल व्यक्तित्व से भी रूबरू करवाया।
मोहित गुप्ता व अज़हर खान के निर्देशन में स्थानीय आईएमए हॉल में मंचित इस नाटक ने महाभारत की विभिन्न घटनाओं के माध्यम से कर्ण के व्यक्तित्व के अलग-अलग पक्षों पर प्रकाश डाला। पैदा होते ही कुंती द्वारा त्याग देने बाद उसके साथ किस-किस तरह से भेदभाव किया गया। कैसे छल से उसके दिव्य क्वच और कुंडल ले लिए गए। युद्ध से हटने के लिए कृष्ण और कुंती द्वारा किस तरह भावनात्मक दबाव डाला गया। परन्तु इसके बाद भी वह अपने सिद्धांतों से पीछे नहीं हटा तो धोखे से उसका वध कर दिया गया। कुल मिलाकर विभांशु वैभव द्वारा लिखित यह नाटक कर्ण के माध्यम से तत्कालीन समाज में व्याप्त ऊंच-नीच और वर्णव्यवस्था के कारण होने वाले भेदभाव को दिखाने में सफल रहा।
महारथी की प्रस्तुति दिल्ली के वीकेंड थियेटर एंड फिल्मस के कलाकारों ने दी। नाटक में कृष्ण और गुरु द्रोण के रूप में रजत, कर्ण रूप में कैवल्य और कुंती के रूप में संस्कृति ने विशेष तौर पर प्रभावित किया। अन्य कलाकारों में गौतम, हिमांशु, विशाल, महिमा, अंशुम, कुणाल, कार्तिकेय, पूजा और कीर्ति ने भी अपने-अपने पात्रों से पूरा न्याय किया। पूजा, संस्कृति, रजत दहिया, अर्पण और रितेश ने पर्दे के पीछे की जिम्मेदारियां निभाईं।
नाटक का शुभारंभ महर्षि दयानंद विश्विद्यालय के प्रो. राजेन्द्र शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार सुनित धवन, सप्तक के अध्यक्ष विश्वदीपक त्रिखा और निर्देशक मोहित गुप्ता व अज़हर खान ने दीप प्रज्वलित करके किया। मंचन के दौरान प्रो. मनमोहन, पत्रकार धर्मेंद्र कंवारी, डॉ. अजय बल्हारा, नरेश प्रेरणा, ब्रह्मप्रकाश, श्रीभगवान शर्मा, सिद्धार्थ भारद्वाज, निकिता, जगदीप जुगनू, शक्ति सरोवर त्रिखा, अविनाश सैनी, विकास रोहिल्ला, मनोज कुमार विशेष रूप से उपस्थित रहे। मंच संचालन रिंकी बत्रा ने किया।
सप्तक के सचिव अविनाश सैनी ने बताया कि हर रविवार को सांय 6.30 बजे स्थानीय आईएमए हाल में होने वाला यह नाटक फेस्टिवल पूरी तरह से आत्मनिर्भर है और बिना किसी सरकारी सहायता के किया जा रहा है। इसमें कलाकार खुद किराया खर्च करके आते हैं और उनके रहने-खाने व मंचन का खर्च स्थानीय कलाप्रेमियों द्वारा किया जाता है। इसलिए अब इसका नाम ‘घर फूंक थियेटर फेस्टिवल’ कर दिया गया है। फेस्टिवल में 24 अक्टूबर को जानी मानी निर्देशक काजल सूरी द्वारा नाटक ‘तांडव’ का मंचन किया जाएगा। प्रवेश सभी के लिए निशुल्क रहेगा।