“सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के उस नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है, जिसमें फैक्ट्रियों को छूट दी गई थी कि वे ओवरटाइम की मजदूरी का भुगतान किए बिना मजदूरों से अतिरिक्त काम करा सकते हैं।”
सर्वोच्च न्यायालय ने कोरोनावायरस के चलते गुजरात की फैक्ट्रियों गुजरात की फैक्ट्रियों को काम के घंटे बढ़ाने की छूट देने के मामले में गुजरात सरकार को बड़ा झटका दिया है। शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार के एक नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है, जिसमें सरकार ने फैक्ट्रियों को छूट दी थी कि वे मजदूरों को ओवरटाइम मजदूरी का भुगतान किए बिना अतिरिक्त काम करा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महामारी कानूनी प्रावधानों को हटाने और श्रमिकों को उचित मजदूरी का अधिकार प्रदान नहीं करने का कारण नहीं हो सकती। कोर्ट ने गुजरात सरकार को निर्देश दिया है कि अप्रैल से श्रमिकों को ओवरटाइम का भुगतान किया जाए।
बता दें कि गुजरात सरकार ने एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत श्रम कानूनों में ढील देकर ओवरटाइम का भुगतान किए बिना मजदूरों से हर दिन 3 घंटे अधिक काम करवाने की छूट फैक्ट्री मालिकों को दी गई थी। गुजरात मजदूर सभा ने सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर यह फैसला आया है।
अपने फैसले में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली खंडपीठ ने इस नोटिफिकेशन को रद्द करते हुए कहा कि महामारी कोई पब्लिक इमरजेंसी नहीं है। इससे देश की आंतरिक सुरक्षा को कोई खतरा नहीं। उन्होंने कहा कि मंदी का पूरा बोझ अकेले श्रमिकों पर नहीं डाला जा सकता है।
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की तीन जजों की पीठ ने कहा कि महामारी के लिए श्रमिकों पर बोझ डालना एक उपयुक्त प्रतिक्रिया नहीं है। उन्होंने कहा कि उचित वेतन, रोजगार के अधिकार और जीने के अधिकार का हिस्सा है। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने पब्लिक इमरजेंसी बताते हुए अधिसूचना जारी की थी जबकि कोर्ट ने माना कि कोरोना महामारी फैक्ट्री एक्ट की धारा 5 के तहत वर्णित पब्लिक अग्रवंशी के दायरे में नहीं आता।