– सुरेंदर पाल सिंह
बैशाखी के मौके पर सन 1699 में उत्तरी भारत में एक ऐसे सामाजिक-धार्मिक-राजनैतिक आंदोलन का सूत्रपात हुआ था जिसने आने वाले समय में भारतीय समाज पर दूरगामी प्रभाव डाला।
1. गुरु गोबिंद राय के द्वारा खालसा पन्थ की नींव आज के ही दिन आनन्दपुर साहब में रखी गयी थी।
2. पाँच ऐसे व्यक्ति पहले खालसा घोषित किए गए जो देश के भिन्न भिन्न इलाकों से सम्बंध रखते थे और जिनमें से तीन शूद्र थे।
3. सभी को एक ही बर्तन से शर्बत पिलाया गया, यानी अमृत छकाया गया।
4. उन पाँचों के नाम बदल कर उनके नाम के साथ सिंह जोड़ा गया। अब ये खालसा कृतनाशी ( पुराने पेशे से आज़ादी), कुलनाशी (पुराने परिवार से हट कर बड़े सिक्ख परिवार से जुड़ना), धर्मनाशी ( पुरानी धार्मिक पहचानों से मुक्ति), कर्मनाशी ( पुरानी आस्थाओं और संस्कारों से छुटकारा) हो गए थे।
5. अब के बाद प्रत्येक सिक्ख जिसकी कोई भी जाति रही हो उसके नाम के साथ सिंह और प्रत्येक महिला सिक्ख के साथ कौर होगा। इस प्रकार अब गुरु गोबिंद राय भी गुरु गोबिंद सिंह कहलाने लगे।
6. जनेऊ, तिलक, मूर्तिपूजा, देवी-देवता, मंदिर, तीर्थयात्रा, शास्त्रों-पुराणों की मान्यताओं के बदले नए प्रकार की रहत (मर्यादाएँ) शुरू की गईं।
7. उस वक़्त के मुग़ल दरबार में पेश किए गए रोज़नामचा के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह ने एकत्रित समुदाय को इस प्रकार से सम्बोधित किया था :-
“अब से हम धर्म के भेदों को भुलाकर एक ही पन्थ और पथ को मानेंगे। हिंदुओं के चारों वर्ण, जिनके लिए शास्त्रों में अलग-अलग विधान हैं, उन्हें एकदम त्यागते हुए आपसी सहयोग और मेलजोल को अपनाया जाए। कोई अपने आपको दूसरे से श्रेष्ठ ना माने। किसी पुराने शास्त्र को मानना बंद हो। हिंदू धर्म के अनुसार पवित्र मानी गई गंगा या अन्य तीर्थस्थानों को महत्व ना दिया जाए। राम, कृष्ण, ब्रह्मा, दुर्गा जैसे हिंदू देवी-देवताओं की पूजा न करते हुए गुरु नानक और उनके उत्तराधिकारी गुरुओं की बाणी में विश्वास रखा जाए। चारों वर्णों के लोग सिक्ख बनें, एक ही बर्तन में खाएँ और एक दूसरे के लिए किसी प्रकार के अपमान की भावना ना रखें।”
“(Ref.: A short history of Sikhs : Teja Singh and Ganda Singh; The Sikh Religion: Macauliffe)
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