कुश्ती के लिए देश के पहले अर्जुन अवार्ड विजेता भी हैं उदयचंद

आज कुश्ती में हरियाणा के खिलाड़ियों की विश्वस्तर पर धाक है। एशियाई खेलों और वर्ल्ड चैंपियनशिप के अलावा हमारे पहलवान ओलंपिक पदक भी हासिल कर चुके हैं। देश की पहली ओलंपियन महिला पहलवान और देश के लिए कुश्ती में पहला ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी भी हरियाणा से ही रही हैं। टोक्यो 2020 में भी कई कुश्ती खिलाड़ी पदक के दावेदार माने जा रहे हैं। लेकिन हमेशा ऐसी स्थिति नहीं थी। एक समय कुश्ती सिर्फ ग्रामीण आंचल तक ही सीमित था और कुश्ती खिलाड़ियों का वह रुतबा नहीं था, जो आज है। ऐसे समय में, प्रदेश की शान रहे पहलवान उदयचंद ने विश्वस्तर पर कुश्ती का परचम फहराया और नए खिलाड़ियों के प्रेरणास्रोत बने।
25 जून 1935 को हिसार के जांडली गांव में जन्मे उदय चंद को विश्व चैंपियनशिप में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाड़ी होने का गौरव भी प्राप्त है। कुश्ती के लिए देश का पहला अर्जुन अवार्ड भी उन्हीं को मिला था। उनके नाम के साथ और भी कई रिकॉर्ड जुड़े हैं। उदयचंद लगातार 13 साल तक राष्ट्रीय चैंपियन रहे, जो आज भी एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड है। इसके अलावा, वे और उनके बड़े भाई हरिराम एक-साथ विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लेने गए थे। इस बारे में एक बार खुद उदयचंद ने कहा था, “पहली बार हम दो सगे भाइयों ने विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था। उसके बाद आज तक देश की एक मां के दो बेटे विश्व चैंपियनशिप में एक साथ नहीं गए हैं। हिसार में हम दो भाई ऐसे थे, जो इस मुकाम पर पहुंचे।” उदयचंद और भीम सिंह को हरियाणा के पहले ओलंपियन होने का गौरव भी मिला है। सन 1968 के ओलंपिक खेलों में उदयचंद ने कुश्ती में और भीम सिंह ने ऊंची कूद की स्पर्धा में हिस्सा लिया था।

पहलवान उदयचंद ने 1961 में जापान के योकोहम में हुई एफआईएलए (FILA) रेसलिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में देश के लिए कांस्य पदक जीतकर नया इतिहास रचा था। उन्होंने यह उपलब्धि फ्रीस्टाइल कुश्ती के 67 किलोग्राम भार वर्ग, यानी लाइटवेट में हासिल की। उन्हें ईरान के विश्व चैंपियन पहलवान मोहम्मद अली स्नातकरन ने अंकों के आधार पर हराया।
कुश्ती खिलाड़ी और कोच के रूप में नाम कमाने वाले उदयचंद को फ्री स्टाइल कुश्ती के साथ-साथ ग्रीको रोमन में भी बराबर की महारत हासिल रही है। उन्हें चार बार रेसलिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाग लेने का श्रेय प्राप्त है। सन 1961 में योकोहम के बाद उन्होंने 1965 मैनचेस्टर वर्ल्ड चैंपियनशिप, 1967 दिल्ली वर्ल्ड चैंपियनशिप और 1970 एडमोंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप में शिरकत की। 1967 दिल्ली वर्ल्ड चैंपियनशिप में वे फ्रीस्टाइल कुश्ती के 70 किलोग्राम भार वर्ग में पांचवें स्थान पर रहे।

भारतीय सेना की देन उदयचंद ने लगातार तीन ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व किया। 1960 के रोम ओलंपिक खेलों और 1964 के टोक्यो ओलंपिक में तो वे कुछ खास नहीं कर पाए, किंतु 1968 के मेक्सिको सिटी ओलंपिक खेलों में उन्होंने दमदार प्रदर्शन करते हुए छठा स्थान हासिल किया। वर्ल्ड चैंपियनशिप और ओलंपिक खेलों में देश का नाम रोशन करने के अलावा उन्होंने दो बार एशियाई खेलों में भी भाग लिया और दोनों में ही पदक जीते। 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में उन्होंने फ्रीस्टाइल और ग्रीको रोमन, दोनों प्रारूपों में चुनौती पेश की और अपने प्रतिनिधियों को धूल चटाते हुए दोनों में ही रजत पदक हासिल किए। जकार्ता में दो रजत पदक जीतने वाले उदय चंद्र को अगली बार 1966 के बैंकॉक एशियाई खेलों में कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा। वे 70 किलोग्राम फ्रीस्टाइल कुश्ती में तीसरे स्थान पर रहे। 1958 से 1970 तक 13 वर्ष निर्विवाद राष्ट्रीय चैंपियन रहे उदय चंद्र ने 1970 के एडिनबर्ग कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर अपने चमकदार खेल कैरियर को विराम दिया।
वर्ल्ड चैंपियनशिप में देश के लिए पहला पदक जीतने और कुश्ती के खेल में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करने के लिए उन्हें 1961 में अर्जुन अवार्ड प्रदान किया गया। खेलों के क्षेत्र में दिए जाने वाले इस प्रतिष्ठित अवार्ड को हासिल करने वाले वे कुश्ती के पहले खिलाड़ी रहे हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि उन्हें अर्जुन पुरस्कार के स्थापना वर्ष में ही यह अवार्ड मिल गया। यानी, वे इस पुरस्कार के लिए चुने गए देश के पहले 18 खिलाड़ियों में शामिल रहे। अर्जुन पुरस्कार की स्थापना वर्ष 1961 में ही हुई थी।
भारतीय सेना से सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उदयचंद ने चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में कुश्ती कोच का कार्यभार संभाल लिया। यहां उन्होंने 1970 से लेकर 1996 तक, 26 वर्ष अपनी सेवाएं दीं। इस दौरान उन्होंने अनेक युवा प्रतिभाओं को निखारा। उनकी देखरेख में कुश्ती के दाव-पेंच सीख कर कई पहलवानों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और देश-प्रदेश व अपने विश्वविद्यालय का नाम रोशन किया। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की टीम ने उनके मार्गदर्शन में खेलते हुए अनेक बार ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप जीती।

एक खिलाड़ी और कोच के रूप में बेहद सफल जीवन जीते हुए शानदार उपलब्धियां हासिल करने वाले उदयचंद ने हरियाणा में कुश्ती के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज से करीब 50 साल पहले जब उदयचंद दुनिया-भर में देश का परचम फहरा रहे थे, तब कुश्ती को लड़कपन के एक खेल और मनोरंजन के हिस्से के तौर पर ही अधिक मान्यता प्राप्त थी। तब न तो कुश्ती सिखाने के पर्याप्त ट्रेनिंग सेंटर थे और न ही लोग अपने बच्चों को इस खेल की बारीकियां सिखाने को तैयार थे। वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीतकर उदयचंद ने जो मान-सम्मान और रुतबा हासिल किया, उसने नि:संदेह युवाओं को इस खेल की तरफ आकर्षित किया। उन से प्रेरित होकर कितने ही युवाओं ने कुश्ती के खेल को अपनाया। यही नहीं, उन्होंने उभरते हुए खिलाड़ियों को सही रास्ता दिखाकर उन्हें आगे बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभाई। यह उन जैसे खिलाड़ियों की प्रेरणा और मार्गदर्शन ही है कि आज हरियाणा के पुरुष ही नहीं, महिला खिलाड़ी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का नाम रोशन कर चुके हैं।
उदयचंद के बारे में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि वे बीड़ी, सिगरेट, हुक्का और अन्य तम्बाकू उत्पादों के घोर विरोधी हैं। उनका मानना है कि वे तम्बाकू की लत के कारण ही विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीतने से चूक गए थे और उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा था। एक बातचीत में उन्होंने कहा, “मुझे इस बात का दुख है कि मैं हुक्का पीता था और बीड़ी-सिगरेट, तंबाकू का सेवन करता था। मुझे आज तक इस बात का मलाल है कि अगर मैं ऐसा नहीं करता तो मैं स्वर्ण पदक जीत सकता था।” उन्होंने कहा,”हुक्के ने सारा खेल बिगाड़ दिया, वर्ना आज मेरे पास कम से कम 15 पदक होते।” शायद यही कारण है कि वे देश की युवा पीढ़ी, विशेषकर खिलाड़ियों को तंबाकू, सिगरेट, बीड़ी, हुक्का जैसे तंबाकू उत्पादों से दूर रहने की सलाह देते हैं। वे अपने शिष्यों को भी इन व्यसनों से बचे रहने की सीख देते हैं और कहते हैं, “तंबाकू को हाथ न लगाओ, बाकी सब मैं संभाल लूंगा।” उल्लेखनीय है कि ढलती उम्र के बावजूद वे आज भी खिलाड़ियों को कुश्ती की बारीकियां सिखाने में सक्रिय हैं।
– अविनाश सैनी
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