संपादकीय – 12
पूरी दुनिया में कोरोना का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। रोज हजारों लोग मर रहे हैं। भारत में भी यह धीरे-धीरे पांव फैला रहा है। पूरा देश परेशान है। ज्यादातर लोग अपने घरों में बंद रहकर करोना के खिलाफ जंग में शामिल हो रहे हैं। हां, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अभी भी इसे सीरियसली नहीं ले रहे। …. लेकिन अभी मैं इसकी बात नहीं कर रहा। मैं बात कर रहा हूं उन लाखों लोगों की, जो सीधे इस वायरस से टक्कर ले रहे हैं…..अपनी जान को जोखिम में डालकर, अपने घर परिवार, बाल-बच्चों को छोड़कर!
ये लोग हैं डॉक्टर, नर्स और हेल्थ सिस्टम से जुड़ा हुआ पूरा स्टॉफ। जरा सोचिए कि इनकी लाइफ कितने स्टेक पर है। हल्की सी चूक जिंदगी पर भारी पड़ सकती है और वे कभी भी कोरोनावायरस की चपेट में आ सकते हैं। अनेक डॉक्टर-नर्स तो इसके चंगुल में फंस भी चुके हैं। फिर भी इंसानियत की सेवा के लिए वे अपनी ड्यूटी कर रहे हैं, पूरी ईमानदारी से, पूरे दिल से, साधनों की कमी के बावजूद! सेल्यूट है ऐसे लोगों को।
आज, हम घर से बाहर कदम नहीं रखना चाहते, अपने बच्चों को, अपने घर के किसी व्यक्ति को, बाहर नहीं निकलने देना चाहते। ऐसे में उनके मां-बाप और बाल-बच्चों ने दिल पर पत्थर रखकर उन्हें अपनी-अपनी ड्यूटी निभाने के लिए बाहर भेजा है। तो जरूर, एक सेल्यूट इनके मां-बाप, भाई-बहन और पति-पत्नी-बच्चों के लिए भी बनता है।
सेल्यूट तो उन पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए भी बनता है, जो हर विपरीत परिस्थिति में, बिना आराम किए अपने काम को अंजाम दे रहे हैं। वे सफाईकर्मी जो बिना ग्लब्स और मास्क के, हमारे लिए शहर को साफ रखने की कोशिशों में जुटे हैं। वे सभी सरकारी कर्मचारी, खाने-पीने का सामान और मेडिकल किट तैयार करने, जरूरी सेवाओं को जारी रखने में जुटी वे प्राइवेट कंपनियां, उनके दिहाड़ीदार मजदूर, डिलीवरी ब्वॉय, सामाजिक संस्थाओं के वालंटियर…….कितने ही लोग हैं, जो कोरोना के खतरे के बीच, इस इंतजाम में लगे हैं कि ज्यादातर सेवाएं और सुविधाएं हमारे घर पर या अपने स्थान पर मुहैया करवा सकें और हम अपने घरों में सुरक्षित रह सकें।
कभी कभी ऐसा हो सकता है कि ये लोग भी हताश हो जाएं, निराश हो जाएं, तनाव में आ जाएं और हमारे साथ कुछ गलत सुलूक भी कर बैठें। तनाव को हैंडल करना सच में मुश्किल काम है। इनमें से बहुतों के लिए तो यह और भी मुश्किल काम है, क्योंकि एक-आदमी को कई-कई का काम करना पड़ रहा है। ऊपर से न तो इनको इसके लिए प्रशिक्षित किया जाता है और न ही इन्हें सामाजिक या पारिवारिक सहयोग मिल पाता है। इसलिए, इन पर गुस्सा करने से पहले एक बार इनकी हालत और इनके काम की परिस्थितियों के बारे में ज़रूर सोच लें। वैसे भी नकारात्मक लोग हर फील्ड में होते हैं, इनमें भी होंगे, लेकिन सच में, ये क्रोध के नहीं, प्रेम, अपनेपन और सहानुभूति के हकदार हैं।… और सिर्फ हौसलाअफजाई ही नहीं, इनका यथासंभव सहयोग भी करें। आखिर, जब तक ये लोग अपनी-अपनी ड्यूटी पर हैं, अपनी-अपनी व्यावसायिक-सामाजिक जिम्मेदारी निभा रहे हैं, तभी तक तो हम सुरक्षित हैं!
आप सब से यह भी गुजारिश है कि ऐसी बीमारियों का तोड़ सिर्फ और सिर्फ डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के पास है। वे अपनी कोशिशों में जुटे हैं और संक्रमितों को बचा भी रहे हैं। इसलिए, झाड़-फूंक, टोने-टोटकों, अंधविश्वासों के फेर में न पड़ें। इस मुश्किल घड़ी में दिमागी मजबूती और सामाजिक एकजुटता भी निहायत जरूरी चीज है। इसलिए, एक-दूसरे पर भरोसा बनाए रखें तथा जाति, धर्म व ऊंच-नीच के नाम पर न बंटें। इस मौके का फायदा उठाकर कुछ स्वार्थी लोग अफवाह फैलाने और सामाजिक वैमनस्य पैदा करने की फिराक में भी हैं। वे सोशल मीडिया पर ऊल-जलूल पोस्ट भेज रहे हैं और दूसरे धर्मों के प्रति नफरत फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। हमें उनके बहकावे में न आकर अपना मानसिक संतुलन बनाए रखना है। और अंत में, बहुत सारे गरीब, बेघर, प्रवासी मजदूर बेहद मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। वे अपने घर-परिवार और काम-धंधों की जगह से दूर, यहां-वहां फसे हैं और भूख-बीमारी के साथ-साथ मानसिक तनाव भी झेल रहे हैं। वक्त का तकाजा है कि अपना मानव धर्म निभाते हुए, बिना धर्म-जाति-क्षेत्र का भेदभाव किए, हम मिलकर इन मजबूर लोगों की मदद करें। यह भी कोरोना के खिलाफ जंग का एक महत्वपूर्ण मोर्चा है। कहीं ऐसा न हो कि हम बीमारी की लड़ाई तो जीत लें, पर इंसानियत हार जाए।