नोवल कोरोना वायरस का संक्रमण जब से फैलना शुरू हुआ है तब से ही इसकी वैक्सीन बनने की उम्मीद की जा रही है। इस पर काफी काम चल रहा है और सफलता भी मिल रही है लेकिन अभी तक कोई वैक्सीन बनकर तैयार नहीं हो सकी है। वैक्सीन तैयार होने में कितना समय लगेगा यह भी अभी पक्के तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता। खैर! क्या कभी आपने यह विचार किया है कि वैक्सीन काम कैसे करती है? इस लेख में हम यही बात करेंगे कि वैक्सीन कैसे हमें बीमारियों से बचाती है?
आपने इम्युनिटी, यानी हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के बारे में तो सुना ही होगा। यह हमारे शरीर की रक्षा प्रणाली होती है जो हमें संक्रमण से बचाती है। इसके दो भाग होते हैं। पहली होती है इनेट इम्युनिटी यानि नैसर्गिक प्रतिरोधक क्षमता। यह जन्मजात होती है और हमारे शरीर की रक्षा की पहली पंक्ति का काम करती है। जब भी कोई बाहरी आक्रमण शरीर पर होता है तो उसका सबसे पहला सामना इसी से होता है। इसके बाद आती है अक्वायर्ड, यानी अर्जित इम्युनिटी, जिसे सेल मिडीएटेड इम्युनिटी भी कहते हैं। जैसा कि नाम से पता चलता है यह वह इम्युनिटी है जो हम अपनी जिंदगी के दौरान हासिल करते हैं। यह हमारे शरीर में मौजूद कुछ खास सेल्स, यानी कोशिकाओं से चालित होती है। ये कोशिकाएं होती हैं श्वेत रक्त कोशिकाएं यानि लिम्फोसाइट्स। ये भी दो तरह की होती हैं। ‘टी’ सेल्स और ‘बी’ सेल्स। ‘टी’ सेल्स हमारी छाती में मौजूद एक ग्रंथि थाइमस में बनती हैं और ‘बी’ सेल्स हमारी बोन मेरो, यानी अस्थि मज्जा में। इनमें से ‘टी’ सेल्स दो तरह की होती हैं। किलर, यानी मारक ‘टी’ सेल्स और हेल्पर, यानी मददगार ‘टी’ सेल्स। मददगार टी सेल्स या तो इम्युन रिस्पॉन्स को रेगुलेट करती हैं या फिर मेमोरी, यानी यादगार टी सेल्स में विकसित हो जाती हैं। जैसा कि नाम से जाहिर है किलर ‘टी’ सेल्स आक्रमक कीटाणुओं को मारने का काम करती हैं और मेमोरी ‘टी’ सेल्स उन्हें याद रखने का। इसका मतलब यह हुआ कि एक बार कोई इन्फेक्शन हुआ तो शरीर की किलर ‘टी’ सेल्स उससे लड़ कर उसे खत्म कर देती है और मेमोरी टी सेल उसके एंटीजन को याद रख लेती हैं। यहां एक चीज और जाननी जरूरी है। जब कोई बैक्टीरिया या वायरस शरीर पर हमला करता है तो हमारी इम्युनिटी उसके किसी घटक की पहचान करती है जो उस पर मौजूद कोई प्रोटीन, लिपिड या कार्बोहायड्रेट हो सकता है। इसी को एंटीजन कहते हैं। हमारी ‘बी’ सेल्स इनके साथ प्रतिक्रिया करने के लिए खास तरह के प्रोटीन का निर्माण करती हैं, जिसे एंटीबॉडी कहते हैं। किसी भी खास एंटीजन के खिलाफ एक खास एंटीबॉडी का ही निर्माण होता है।
तो इन सब बातों का वैक्सीन से क्या संबंध है? संबंध यह है कि जब कोई रोगाणु शरीर पर हमला करता है तो हमारी ‘बी’ सेल्स एंटीबॉडी बनाती हैं जो इनका खात्मा करना शुरू कर देती हैं। लेकिन इस रोगाणु के एंटीजन को पहचानने और उसके खिलाफ इम्यून रिस्पॉन्स देने के लिए शरीर को समय लगता है जोकि सामान्य बात है। समस्या तब आती है जब बीमारी बहुत घातक हो, जैसे कि चेचक या फिर बच्चों में होने वाला खसरा जो मरीज को इतना समय ही नहीं देते कि इम्यून रिस्पॉन्स पैदा करके उन्हें खत्म कर दे। उससे पहले ही रोगी या तो अपंग हो जाता है या फिर उसकी मृत्यु हो जाती है।
तो अब वैक्सीन का क्या रोल है? वैक्सीन मरे हुए या कमजोर कर दिए गए एंटीजन होते हैं। ये शरीर में बीमारी पैदा नहीं कर सकते। लेकिन हमारे शरीर की इम्युनिटी इनको पहचान कर एंटीबॉडी जरूर बना लेती हैं। इसके साथ ही किलर ‘टी’ सेल्स और मेमोरी ‘टी’ सेल्स भी सक्रिय हो जाती हैं। इस कमजोर या मरे हुए एंटीजन को शरीर की इम्युनिटी खत्म कर देती है और मेमोरी ‘टी’ सेल्स इनको याद रख लेती हैं। अब अगर यही रोगाणु भविष्य में कभी शरीर पर हमला करता है तो मेमोरी ‘टी’ सेल्स को इनकी याद रहती है। जैसे ही यह शरीर में पहुंचता है, तो शरीर की इम्युनिटी इसे तुरंत पहचान कर इसके खिलाफ एकदम से इम्यून रिस्पॉन्स पैदा कर देता है और कोई भी नुकसान पहुंचाने से पहले इसको खत्म कर देता है।
तो इस तरह से सम्बंधित वैक्सीन हमारे शरीर को उस रोग से बचा लेती है। हमारे पास अलग-अलग रोगों के रोगाणुओं के खिलाफ वैक्सीन उपलब्ध हैं। कुछ वैक्सीन जीवनपर्यंत इम्युनिटी देती हैं, जैसे कि खसरा। परन्तु कुछ के खिलाफ बहुत कम, जैसे इन्फ्लुएंजा के खिलाफ अक्सर 1 वर्ष की ही इम्युनिटी मिलती है।
उम्मीद है कि जल्द ही नोवल कोरोना वायरस के खिलाफ भी वैक्सीन बन जाएगी।