अध्यापक और उनके परिजन निभा रहे हैं फर्ज़
सारी दुनिया। स्कूल अध्यापकों के बाद प्रदेश के अनेक स्कूलों में शिक्षकों की बेहद कमी हो गई है। कई स्कूलों में एक-आध अध्यापक रह गए हैं, तो कई ऐसे भी हैं जहां कोई अध्यापक नहीं बचा। परीक्षाएं सिर पर हैं और अभिभावक व बच्चे विरोध प्रदर्शन करने पर मजबूर हैं। इसके बावजूद सरकार और आला अधिकारियों ने अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते हुए हज़ारों विद्यार्थियों को राम भरोसे छोड़ दिया है। ऐसे में, बचे हुए अध्यापक अपने परिजनों की मदद से बच्चों को पढ़ाने का फर्ज निभा रहे हैं। जींद के गांव ईगराह के रा. व. मा.विद्यालय की अध्यापिका बताती हैं, “मैं अपने स्कूल की बात करती हूँ। हमारे स्कूल में 12वीं और नौवीं कक्षाओं के दो-दो सैक्शन हैं। यहाँ न तो टीजीटी, यानी छठी से आठवीं के लिए कोई maths या science का अध्यापक है और न ही नौंवीं से बाहरवीं के लिए कोई Maths तथा science का lecturer है। गाँव वाले न जाने क्यों चुप हैं।”
उन्होंने कहा, “व्यवस्था स्कूल ने अपने स्तर पर की है, क्योंकि 29 सितम्बर से बच्चों के exam हैं। मैं खुद English lecturer हूं और English के अलावा छठी से आठवीं तक maths भी पढ़ा रही हूँ। जाहिर सी बात है कि इतना समय नहीं दे पाती जितना कि संबधित अध्यापक देता। इसके अलावा, कक्षा 9 और 10 को मेरी बिटिया maths और science पढा़ने के लिए मेरे साथ जाती है ताकि बच्चे exam में कुछ बेहतर कर सकें। यह भी एकदम निशुल्क सेवा है।
अध्यापिका ने बताया कि उनके स्कूल के अन्य अध्यापक भी अपने विषय के अतिरिक्त कुछ और भी पढ़ा रहे हैं। एक अन्य स्कूल में चपरासी ही maths पढ़ा रहा है। निःसंदेह आज भी ऐसे अध्यापक व अन्य कर्मचारी हैं, जो अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुए सरकारी स्कूलों को बचाने में जुटे हैं। निश्चित ही यह काफ़ी काबिल-ए-तारीफ़-तारीफ़ बात है। लेकिन, अगर सरकार स्कूलों को बर्बाद करने पर जुटी हो तो उसे अकेले अध्यापकों या कर्मचारियों के प्रयासों से रोका नहीं जा सकता। इसके लिए लोगों को सामने आना पड़ेगा। देख लीजिए, ये लोग तो जैसे-तैसे नौकरी कर जाएंगे लेकिन आगे आपके बच्चों का क्या होगा!