मेरे झुकने सेबड़ा हो जाता हैकद तुम्हारा मेरे चुप रहने सेमिल जाता है तुम्हेंअभिव्यक्ति का एकाधिकारलगता है किसारी का कायनात मेंसिर्फ तुम ही तुम हो सूख जाता हैतुम्हारे दुखों का सागरमेरे रोने से,तुम्हारी खुशियों कोमिल जाते हैंनए क्षितिज मेरे डरने सेखत्म हो जाता हैडर तुम्हारे अंदर काऔर तुमशेर हो जाते हो तुम्हारी पूर्णता कापैमाना हैमेरा…
Category: कविता
होली
चमन में रंग-औ-बू है, तो होली है,प्यार की जुस्तजू है, तो होली है।मैं ही मैं हूं, तो फाग क्या ख़ाक होगा,संग में मेरे ‘गर तू है, तो होली है।हिज़्र की रात आंसुओं में बह जाए,वस्ल की आरजू है, तो होली है।ज़हर नफरत का दिल से निकल जाए,खुशी से गाल सुर्खरू है, तो होली हैक़त्ल-औ-ग़ारत से…
कविता: “आज मन एकाकी है“
– मीनू हुड्डा दिशाएँ सर्वत्र ओढ़े नितांत मौन हैं,मर्यादाएँ समस्त, पूर्णतया गौण हैं,हवाओं में न कहीं गर्मजोशी है,अजस्त्र मरघट सी खामोशी है,ओ रे माझी! थाम लो पतवार,अविलम्ब चलो बीच मझधार,कि मुझमें अभी जीवन बाक़ी है।आज मन एकाकी है।। हुआ शुष्क तरु सा अतृप्त जीवन,आवेशों व आवेगों में लिप्त जीवन,ख़ालिस कुंठाओं से पटा जीवन,निर्बाध शंकाओं से…
“मेरे गाँव की साँझ”
(कवयित्री – मीनू हुड्डा) अक्सर याद आती है मेरे गाँव की साँझ,सुरीली साँझ, सुरमई साँझ। जैसे अलादीन के चिराग़ से जिन्न निकलता था,मेरे गाँव की साँझ से संगीत उपजता था।कुलदेव का महिमा-मंडन करते जल और फूल,गोधूलि में कच्चे रास्तों पर उड़- उड़ जाती धूल,घोले बैलों की घंटियों की टन- टन,नयी नवेली चूड़ियों की खन-खन,बतियाती पाजेबों…