मेरे झुकने से
बड़ा हो जाता है
कद तुम्हारा
मेरे चुप रहने से
मिल जाता है तुम्हें
अभिव्यक्ति का एकाधिकार
लगता है कि
सारी का कायनात में
सिर्फ तुम ही तुम हो
सूख जाता है
तुम्हारे दुखों का सागर
मेरे रोने से,
तुम्हारी खुशियों को
मिल जाते हैं
नए क्षितिज
मेरे डरने से
खत्म हो जाता है
डर तुम्हारे अंदर का
और तुम
शेर हो जाते हो
तुम्हारी पूर्णता का
पैमाना है
मेरा अधूरापन
इसलिए –
मेरा हंसना, बोलना, सिर उठाना,
भयमुक्त होना मेरा
रास नहीं आता तुम्हें
फिर भी
मेरा होना
ज़रूरी है तुम्हारे लिए
क्योंकि
मेरे होने से ही
मतलब है
तुम्हारे होने का।
- अविनाश सैनी