इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि उनका भाषण घृणा नहीं, राष्ट्रीय एकता और अखंडता की अपील है। तुरंत रिहा करने के निर्देश दिए।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 (एनएसए) के कड़े प्रावधानों के तहत हिरासत में लिए गए डॉ. कफील खान को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बड़ी राहत दी है। डॉ. खान की मां द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निपटारा करते हुए एक सितंबर को कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया और सरकार को उन्हें तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया। डॉ. कफील की मां ने आरोप लगाया गया था कि उनके बेटे को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है और उन्हें तुरंत रिहा किया जाए।
अपने फैसले में मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह की खंडपीठ ने मथुरा जेल में बंद डॉ. खान के खिलाफ एनएसए के आरोपों को रद्द कर दिया। उन्होंने कहा, ‘डॉ. कफील खान का भाषण घृणा या हिंसा को बढ़ावा नहीं देता, यह राष्ट्रीय अखंडता और नागरिकों की एकता का आह्वान करता है।’ हाईकोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ द्वारा एनएसए अधिनियम के तहत 13 फरवरी, 2020 को पारित किए गए हिरासत के आदेश और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की गई इसकी पुष्टि को भी निरस्त कर दिया। यही नहीं, न्यायधीशों ने डॉ. कफील खान को हिरासत में लेने की अवधि के विस्तार को भी अवैध घोषित कर दिया।
आपको बता दें कि डॉ. खान को कथित रूप से सीएए के विरोध के बीच 13 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उनकी गिरफ्तारी 29 जनवरी को मुंबई में हुई थी। 10 फरवरी को अलीगढ़ सीजेएम कोर्ट ने उनकी जमानत के आदेश दे दिए थे लेकिन इससे पहले ही उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत आरोप तय कर दिए गए और वे जेल से रिहा नहीं हो पाए।
इस केस में डॉ. कफील पर धर्म, नस्ल, भाषा के आधार पर नफरत फैलाने के मामले में धारा 153-ए के तहत केस दर्ज किया गया था। पुलिस का कहना था कि 12 दिसंबर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों के सामने दिए गए संबोधन में उन्होंने धार्मिक भावनाओं को भड़काया और दूसरे समुदाय के प्रति शत्रुता बढ़ाने का प्रयास किया। खंडपीठ ने एनएसए के तहत डॉ. खान के खिलाफ कार्यवाही के मूल रिकॉर्ड पर गौर करने के बाद मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
गौरतलब है कि गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कार्यरत डॉ. खान अगस्त 2017 में पहली बार खबरों में आए थे। तब उस अस्पताल में ऑक्सीजन आपूर्ति की कमी के कारण लगभग 60 शिशुओं की मौत हो गई थी। मामले में पहले सूचित किया गया था कि उन्होंने अपनी जेब से भुगतान करके आपातकालीन ऑक्सीजन की आपूर्ति की व्यवस्था करने के लिए तुरंत कार्रवाही की थी। बच्चों के लिए गैस सिलेंडरों की व्यवस्था करने में नायक के रूप में उभरने के बावजूद, उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 409 (लोक सेवक द्वारा विश्वास का आपराधिक उल्लंघन ), 308 ( गैर इरादतन हत्या का प्रयास) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत दर्ज एफआईआर में नामजद कर दिया गया। उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपने कर्तव्यों में लापरवाही बरती, जिसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की कमी हुई। उन्हें सितंबर 2017 में गिरफ्तार करने के बाद अप्रैल 2018 में ही रिहा कर दिया गया। तब भी उच्च न्यायालय को व्यक्तिगत रूप से डॉ. खान के खिलाफ चिकित्सा लापरवाही के आरोपों को स्थापित करने वाली कोई सामग्री नहीं मिली थी और कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी थी। पद पर लापरवाही बरतने के आरोप में उन्हें सेवा से भी निलंबित कर दिया गया था। लेकिन विभागीय जांच के बाद सितंबर 2019 में उन्हें तमाम आरोपों से मुक्त कर दिया गया था।