हाइलाइट्स :
- 14 अगस्त से शुरू होगा विधानसभा का सत्र
- शुरुआती तीन प्रस्तावों में गहलोत ने 31 जुलाई से सत्र बुलाने की थी मांग
- राज्यपाल ने कर दिए थे तीनों प्रस्ताव वापिस, सरकार पर पूछे गए सवालों का जवाब नहीं देने का लगाया था आरोप
- गहलोत ने सरकार गिराने की साजिश बताया, लेकिन कहा कि हम मजबूत हैं।
सत्ता के घमासान के बीच 14 अगस्त से राजस्थान विधानसभा सभा सत्र बुलाने का रास्ता साफ हो गया है। सरकार के चार बार प्रस्ताव भेजने के बाद आखिरकार 29 जुलाई की रात को राज्यपाल कलराज मिश्र ने अशोक गहलोत सरकार को विधानसभा सत्र बुलाने की मंजूरी दे ही दी। शुरुआती तीन प्रस्तावों में गहलोत ने 31 जुलाई से से सत्र बुलाने की मांग की थी, जिसे राज्यपाल ने ठुकरा दिया था। चौथे प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए उन्होंने 14 अगस्त को सत्र बुलाने की मंजूरी प्रदान कर दी। राज्यपाल ने अपने आदेश में कहा कि सत्र के दौरान कोरोना गाइडलाइंस का पूरा पालन किया जाए।
प्रस्ताव को मंजूर करने के बाद मिश्र ने बताया कि पिछले प्रस्तावों के जवाब में उन्होंने तीन शर्तें रखी थीं, जिनके बारे में सरकार ने जवाब नहीं दिया था। इसके उलट, राज्यपाल के अधिकारों की सीमाएं बता दी गईं। यही कारण था कि पहले प्रस्ताव स्वीकार नहीं किए जा सके। गौरतलब है कि पहले के प्रस्तावों को खारिज करते वक्त गवर्नर ने 21 दिन का नोटिस देने के साथ-साथ 3 शर्तें दोहराई थीं।
इधर, तीसरी बार अर्जी लौटाने के बाद गहलोत ने राज्यपाल से 15 मिनट के लिए मुलाकात की। राजभवन जाने से पहले गहलोत ने राज्यपाल की आपत्तियों वाली चिट्ठी पर कहा कि प्रेम पत्र तो पहले ही आ चुका, अब मिलकर पूछूंगा कि वे चाहते क्या हैं? 70 साल में पहली बार किसी गवर्नर ने इस तरह के सवाल किए हैं। आप समझ सकते हैं कि देश किधर जा रहा है?
गहलोत ने आरोप लगाया कि सरकार गिराने की साजिश की जा रही है, लेकिन हम मजबूत हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जिन्होंने धोखा दिया है, वे चाहें तो पार्टी में लौटकर आ जाएं और सोनिया गांधी से माफी मांग लें। मुख्यमंत्री ने पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि मोदी जी आप प्रधानमंत्री इसलिए बन पाए, क्योंकि कांग्रेस ने लोकतंत्र की जड़ें मजबूत की थीं।
इस बीच विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने भी 29 जुलाई को राज्यपाल से मुलाकात की। हालांकि उनकी चर्चा के बारे में अभी पता नहीं चल पाया है।
राज्यपाल द्वारा रखी गई शर्तें :
- विधानसभा का सत्र 21 दिन का क्लीयर नोटिस देकर बुलाया जाए, जिससे विधानसभा के सभी सदस्यों को सत्र में आने के लिए बराबर समय और मौका मिलना तय हो सके।
- किसी भी परिस्थिति में विश्वास मत हासिल करने की कार्यवाही की जाती है तो, वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक ही होनी चाहिए। यह तय होना चाहिए कि सभी सदस्य अपनी इच्छा से शामिल हों।
- कोरोना की गाइडलाइंस को देखते हुए यह भी साफ किया जाए कि विधानसभा के सत्र के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग कैसे रखी जाएगी