सारी दुनिया। बेरोजगारी के खिलाफ मोर्चा के संयोजक हरीश कुमार ने प्रेस को जारी बयान में कहा कि भाजपा की खट्टर सरकार द्वारा हरियाणा के सुप्रशिक्षित, कुशल एवं अध्यापन में सक्षम बेरोजगार युवाओं की अनदेखी करते हुए सरकारी स्कूलों में पड़ोसी प्रदेशों के सेवानिवृत्त शिक्षकों को सेवा पर रखने का लिया गया फैसला निहायत ही गलत व नाजायज है। लगता है सरकार के इस फैसले के पीछे कोई छिपा हुआ इरादा है।
सवाल उठता है कि क्या हरियाणा में सक्षम, कुशल, सुशिक्षित बेरोजगार शिक्षक नहीं हैं? क्या इन शिक्षकों ने कई-कई बार एचटेट-सीटेट पास नहीं किया हुआ है? क्या हरियाणा में बेरोजगारी ‘नम्बर वन’ पर नहीं है? ऐसे समय में खट्टर सरकार का यह फैसला एचटेट व सीटेट पास कर लंबे समय से घर बैठे युवाओं के प्रति घोर अन्याय है जो स्कूलों में स्थाई नौकरियों की बाट देखते देखते बूढ़े होते जा रहे हैं। सरकार के पास इन गम्भीर सवालों का कोई जवाब नहीं है।
उन्होंने बताया कि मोदी सरकार की अग्निपथ नीति के नक्शेकदम पर खट्टर सरकार का यह कदम बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं के विरुद्ध ही नहीं, अपितु शिक्षा व छात्र हितों के भी खिलाफ है। यह पूरे प्रदेश के भविष्य के साथ एक बड़ा खिलवाड़ है जिसका हर प्रदेशवासी को पुरजोर विरोध करना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि हर प्रदेश में बुनियादी बातें एकसमान होते हुए भी शिक्षा के पैटर्न व पाठ्यक्रम में भिन्नता होती है। यह बात जानते हुए भी सरकार ने दूसरे प्रदेशों के अन-उपयुक्त रिटायर्ड टीचरों की भर्ती करने का यह गलत निर्णय लिया है। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार स्कूलों के स्थाई पदों पर अस्थाई शिक्षक क्यों भर्ती कर रही। पिछले 8 साल से खट्टर सरकार शिक्षकों के पदों पर भर्ती कार्य को जानबूझकर लटकाए हुए है। दो साल से ग्रुप ‘सी’ व ‘डी’ की भर्ती के लिए सीईटी को बार-बार आगे सरकाया जा रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि स्थाई भर्ती करने की बजाय सरकार इस तरह का जोड़ तोड़ क्यों कर रही है। लिहाजा, दूसरे प्रदेशों के सेवानिवृत्त शिक्षकों को स्कूलों में लगाने के पीछे की मंशा पर संदेह आना स्वाभाविक है। इसमें किसी गहरे षडयंत्र की बू आ रही है।
उन्होंने हरियाणा सरकार को कटघरे में खड़े करते हुए कहा कि इसके अलावा सरकार ने हरियाणावासियों के लिए नौकरियों में 75 फीसदी आरक्षण की घोषणा की थी। असल में, सरकार का वह निर्णय बेरोजगारी की समस्या पर सरकार की विफलता की ही एक अप्रत्यक्ष स्वीकृति थी। अब सरकार का यह ताजा निर्णय उससे एकदम उलट व बचकाना है। इसका सर्वत्र विरोध किया जाना चाहिए और स्थायी आधार पर स्कूलों में अध्यापक भर्ती के लिए जोरदार आवाज उठाई जानी चाहिए।